Book Title: Mahatma Jati ka Sankshipta Itihas
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 99
________________ ( ७८ ) कहूं कर जोर जोर कह कर जोर जोर दिल ने मचाया शोर मेरे प्रभू श्राजा .. प्राऽजा मेरे प्रभू आजा आजा ॥ कहू' ।। देह देवल के मन मन्दिर में प्रभु तुमको बैठाऊं । पले २ तुम पूजन करके अन्तर में गुण गाऊं ॥ नाच उठा मन भेरा देख दीदार तेरा दिल में समा जा प्राऽजा आ ॥ कहूं कर जोर जोर० ॥ मूरत तिहारी मोहनगारी देखत में हरषाऊं । प्रभू तिहारी मूरत पर मैं चारि वारि जाऊं ॥ तडप रहे हैं नयना दरश की प्यासी नयना नैनन में समाजा आऽजा श्रा ॥ कहूं कर जोर जोर० ॥ ताले ताले नाचू गाऊ मन को मस्त बनाऊ । प्रभू तिहारे दर्शन के बिन मैं व्याकुल बन जाऊं ॥ मेरा तो मनवा डोले रोम रोम प्रभू बोले छबि दिखला जा प्राऽजा पा ॥ कहूं कर जोर जोर० ॥ एकत्व भावना प्राये हैं अकेले और जायगे अकेले सब, भोगंगे अकेले दुख सुख भी अकेले ही। माता पिता भाई बन्धु मुत ढारा परिवार, किसी का न कोई साथी सब हैं अकेले ही ॥ 'गिरिधर' छोडकर दुविधा न सोच कर, ___ तत्त्व छान बैठ के अकान्त में अकेले ही । कल्पना है नाम रूप झूठे राव रंक भूप, अद्वितिय चिदानन्द तू तो है अकेले ही । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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