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(७७ )
श्रावक जन तो तेने कहिये श्रावक जन तो तेने कहिये जे पीर पराई जाणे रे । पर दुःखे उपकार करे तोये मन अभिमान न ाणे रे॥ सकल लोक मां सहु ने वन्दे निन्दा न करे केनी रे । वाछ काछ मन निश्चल राखे धन २ जननी तेनी रे ॥ समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी पर स्त्री जेने मात रे । जिव्हा थकी असत्य न बोले परधन नव झाले हाथ रे ॥ मोह मायापे ब्या नहीं जेने दृढ वैराग्य जेना मन मां रे । राम नाम शू ताली लागी सकल तीरथ तेना मनमां रे ॥ वण लोभी ने कपट रहित के काम क्रोध निवाऱ्या रे । भणे नरसयों तेनूं दर्शन करतां कुल एकोतेर ताऱ्या रे ॥
अब हम अमर भये अब हम अमर भये न मरेंगे । या कारण मिथ्यात्व दियो तज क्यों कर देह धरेंगे ॥१॥ राग द्वेष जग बन्ध करत है इनको नाश करेंगे ॥२॥ मर्यो अनन्त काल ते प्राणी सो हम काल हरेंगे ॥३॥ देह विनाशी मैं अविनाशी अपनी गति पकरेंगे ॥४॥ नासी नासी हम थिर वासी चोखे है निखरेंगे ॥५॥ मयो अनन्त वार बिन समझे अब सुखदुख बिसरेंगे ॥६॥ प्रानंदघन सुन्दर अक्षर दो नहीं मुमरे सो मरेंगे ॥७॥
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