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(७१) भूपेन्द्र-- अधकचरे मूरख ही फिरते फिरे न विद्यावान ।
आलिम दौलत कहते रहते रखते दीन ईमान ॥ महेन्द्र- विद्या पढने वाले होते लुच्चे और लबार ।
करन धरन को एक नहीं पर बातें करे हजार । भूपेन्द्र- पूरे पक्के अपने प्रण के होते हैं विद्वान् ।
पूरा करके ही दिखताते जो कुछ कहे जबान ॥ महेन्द्र- प्रालिम फाजिल लाखाँ फिरते टुकडे के लाचार ।
धनियों आगे शीश झुकाते करते जी जी कार ॥ भूपेन्द्र- विद्यावान कभी नहीं होते किसी तरह लाचार ।
प्रालिम की नित सेवा करते बडे बडे सरदार ॥ महेन्द्र- मित्र ठीक है तेरा कहना करता हूं स्वीकार ।
'अमर' पढेगा विद्या को अब करके भिन्न संसार ॥
जुआ संवाद भूपेन्द्र-जरा खेलो जुत्रा २ पल में फकीर अमीर हुआ । मनोहर- मत खेलो जुत्रा २ छन में अमीर फकीर हुआ ॥ भूषेन्द्र- जुआ जो खेला दुर्योधन ने जीती पांडव नार ।
दौलत का कुछ पार न पाया बना परनारी भरतार ॥ मनोहर- जुआ जो खेला राजा नलने दुख का बना अवतार ।
जंगल २ भटका फिरता बनी रानी बेजार ॥ मत ॥ भूपेन्द्र- किस्मत में है खाक तुम्हारे महनत सुबह से शाम ।
रुपया एक-दो तुमने पाया हमारे तो है खूब इन्तजाम ॥
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