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( ७० ) माता-बहु कैसे दिन काटेंगी. उन की ओर निहार..
बेटा मान जा ॥ पुत्र-मर जावं तत्र कौन सँभाले रह जाये आँसू ढार
____माता धारणी ॥ माता-दुनियां का सुख देख के बेटा लीजो संजमधार
वेटा मान जा ॥ पुत्र-पल भर की कुछ खबर नहीं है कल का कौन विचार
माता धारणी ॥ माता-भीख माँगना कठिन हैं लाला फिरना घर २ द्वार
वेटा मान जा ॥ पुत्र-लाज न पायगी समभंगा में घर सारा संसार
माता धारणी ॥ (मां बेटा का पार्ट महेन्द्र और मनोहर करते हैं)
विद्या संवाद महेन्द्र- मत विद्या पढो मत विद्या पढो ।
पढ कर के विद्या क्यों दुख में पडो॥ भूपेन्द्र-- प्राश्रो विद्या पढ़ें पायो विद्या पढें ।
पढ कर के विद्या को ऊंचे चढें ॥ महेन्द्र.. गलियों में जूते सिटकाते फिरते विद्यावान ।
बीस तीस का वेतन पाकर खोते दीनईमान ॥
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