Book Title: Mahatma Jati ka Sankshipta Itihas
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 89
________________ रूपा रूपी धर्म देव प्रातम आरामी । चिदानन्द चेतन अचिन्त्य शिवलीला पामी ॥ सिद्ध बुद्ध तुम वन्दना सकल सिद्ध वर बुद्ध । रमो प्रभु ध्याने करी प्रकटे प्रातम रिद्ध ॥ काल बहु थावर गम्यो भमियो भव माही । विकलेन्द्रिय माही वस्यो स्थिरता नहीं क्याही ॥ तिरि पंचेंद्रिय मांहि देव कर्मे हुं श्राव्यो । करी कुकर्म नरके गयो प्रभु दर्शन नहीं पायो ॥ एम अनन्त काले करिये पाम्यो नर अवतार । हवे जगतारण तुंही मलियो भव जल पार उतार ॥ कृषक सम्बाद घेटा रे दादा पट्टी वरतणो लाइ दे रे नी रहूंगा ढेकरिया में हाकम वण जाऊ रे । बाप-बेटा कदी नी भणवा मेलू रे खेती वगडे प्रापणी मूं निर्धन वण जाऊं रे ॥ बेटा-नी ताडूंगा मोडला रे नी करूंगा पाणत तावडारे माग्यो दादा कालो पड जाऊरे । बाप-प्रापण तो करसाण वरायां हां खेतीको के धंधो हल कुरी ने जोतूंरे बेटा बडो पडेगो फन्दो रे बेटा कदी नी भणवा मेनू रे॥ बेटा-रोज ताई मोडला रे कांदा रोटी खाऊं जो दादा हाकम वण जाऊ नत उर सीरो खाऊं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120