Book Title: Mahatma Jati ka Sankshipta Itihas
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown
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स्नेह तणा म्हारा मीठा सरोवर क्रूर थई न सुकवशो । सोना रूपाना थाल भराव्या हीरा माणक रतन बघाव्या ॥
उर ने आसनिये पधराव्या । उर मां दाह न देशो प्रीतम पाछा नव जाशो । ना मान्या नेम कुमार, सहु विनवे वारम्वार ॥ पालव पाथरी पगमा पडती राजुल रमणी अतिकर गरती। हैया पाट रडीए तो पण ना मान्या भरतार ॥
ना मान्या नेमकुमार । कर्म तणी गति ना केम पामी शके प्रा संसारी । कर्म तणी गति न्यारी केम पामी शके आ संसारी ॥ घेर भावी ने नेमकुमारे दीधो बरसी दान । त्याग्या मिलकत महेल सा सौ त्याग्या वैभव स्थान ॥ दीक्षा लई साधु थया ने छोडियो प्रा संसार । सगा सम्बन्धी सहु ने छोडी वस्या जइ गिरनार ॥ इक जोगी चाल्यो जाय जोबनवन्तों ब्रह्मचारी ए।
सहु ने छोडी जाय ॥ सयम रंगे ए रंगायो सड ने रंगी जाय । राजुल ने पण लोधी संग मां बन्ने साथे जाय ॥ लग्न तणी वर माला बांधी मुगति नी माल । एक थई ने मुक्ति द्वारे बन्ने उडी जाय ॥
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