Book Title: Mahatma Jati ka Sankshipta Itihas
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 79
________________ ( ५८ ) क्रोधाभिमान वश में यदि भूल तुमको जाऊं । हे नाथ कहीं पुम भी मुझको न भुजा देना ॥२॥ हे नाथ मेरी नय्या उस पार लगा देना । अब तक तो निभाया है अब और निभा लेना ॥ ३ ॥ राजुल नेमनाथजी का ब्याह ढोल निशाना गड गड्या वागी वलि शरणाई । मगर जनो सह हर्ष मां लावे लग्न वधाई ॥ घर घर में तोरण बंधाव्या प्रांगणे प्रांगणे रंग पुराव्या सोना रुपा ना थाल भराव्या हीरा माणक रतन वधाच्या मांडवडा मोघा सणगार्या मोघेरा महमान तेडाव्या राजुल बैठी गोख मां सज सोलह शणगार । प्रावे कन्थ कोडामणो हैये हरख अपार ॥ प्रावे आवे रे नेम कुमार ॥१॥ सखियो सहु सणगार करे के मीठी २ बात करे छ। मन्द मन्द हंसती शरमाती राजुल करे विचार ॥ ढोल नगारा वागे वाजा कोड भन्या आवे वर राजा । धामधूम थी ठाठ माठ थी भावे कई नर नार ॥ प्रावे प्रावे रे नेम कुमार ॥२॥ पावी रही के जाम ज्यां प्रावे पावे रे नेम कुमार ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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