Book Title: Mahatma Jati ka Sankshipta Itihas
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 86
________________ रूढियों से तंग अाज हो रही सारी समाज । रूढियों कुरीतियों को बन्धन को छुडाये जा ॥ सुरीतियां चलाये जा ॥२॥ हो रहे लडके नीलाम हैं दुखी जाति तमाम । व्याहो के वे हुए सोदे उनको तू हटाये जा ॥ लालच को हटाये जा । प्रेम का प्रसार हो द्वेष का प्रहार हो । मंगठन बनाय अपनी शक्ति को बढाये जा ॥ फूट को मिटाये जा ॥४॥ प्राज शिवराम देश सह रहा भारी कलेश । उसके अब उद्धार में जान को बढाये जा ॥ आजादी दिलाये जा ॥ ५ ॥ तेरे पूजन को भगवान तेरे पूजन को भगवान बना मन मंदिर प्रालीशान । किसने जानी तोरी माया किसने भेद तुम्हारा पाया । हारे ऋषि मुनि कर ध्यान बना मन मंदिर पालीशान ॥ तू ही जल में तू ही थल में तू ही वन में तू ही मन में। तेरा रूप अनूप जहान बना मन मंदिर प्रालीशान ॥ तू ही हर गुल में तू ही बुलबुल में तू डारन के हर पातन में। बं ही हर दिल में मूर्ति महान बना मन मंदिर प्रालीशान । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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