Book Title: Mahatma Jati ka Sankshipta Itihas
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 85
________________ (६४) प्रार्थना महावीरस्वामी हो अन्तर्यामी हो त्रिशलानन्दन काटो भवफंदन । बाले ही पन में तप कीनो वन में । दर्शन दिखाना भूल न जाना ॥ पार लगाना कृपा निधाना । महिमा तुम्हारी है जग न्यारी ॥ महावीरस्वामी हो अंतर्यामी हो त्रिशला नंदन काटो भवफन्दन ॥ सुध लो हमारी हो व्रतधारी । वन खण्ड में तप करने वाले ॥ केवल ज्ञान के पाने वाले । हो उपदेश सुनाने वाले ॥ हिंसा पाप मिटाने वाले पशुवन बंध छुडाने वाले । स्वामी प्रेम छुडाने वाले हो तुम नियम लिखाने वाले ॥ पूरण तप के करने वाले भक्तों के दुख हरने वाले । पावापुर में आने वाले ॥ धर्म के प्रचार में धर्म के प्रचार में जीवन को विताये जा ॥ जाति के सुधार में तन मन को लगाये जा ॥ दौलत को लुटाये जा ॥ है अविद्या का प्रचार का रहा है अन्धकार ॥ ज्ञान के प्रकाश से अज्ञान को हठाये जा ॥ रोशनी दिखाये ना ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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