Book Title: Mahatma Jati ka Sankshipta Itihas
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 84
________________ ( ६३ ) चैत्यवन्दन करूं चित्त थी (प्रभुजी ) गाऊं गीत रसाल । एम पूजा करी विनति करूं हूं आपो मोक्ष विलास रे ॥ १॥ दियो कर्म ने फासी, काढो कुवासी, जेम जाय नासी । पूरो प्रमारी पास वासुपूज्य विलासी चम्पा ना वासी ॥ प्र संसार घोर महोदधि श्री काढो श्रमने बहार | स्वारथ ना सहु कोई सगा के मातपिता परिवार रे ॥ बालमित्र उलासी विजय विलासी भरजी खासी । पूरो अमारी यास वासुपूज्य विलासी चम्पा ना वासी ॥ माता मरुदेवी ना नन्द माता मरुदेवी ना नन्द देखी ताहरी मूरति मारुं दिजलुभाणुजी । करुणा नागर करुणा सागर काया कंचन वान । धोरी लंकुन पाउले कई धनुष पांचसौ मान ॥ त्रिगडे बेसी धर्म कहन्ता सुणे परषदा बार । जोजन गामिनि वाणी मीठी वरसंति जलधार ॥ उर्वशी रूडी अप्सरा ने रामा छे मन रंग । पाये नूपुर रणझणे कई करती तू ही ब्रह्मा तू ही विधाता तू जग तारण हार । तुम सरीखो नहीं देव जगत मां डवडिया श्राधार ॥ तू ही भ्राता तू ही त्राता तू ही जगत नो देव ! सुरनर किन्नर वासुदेवा करता तुम पद सेव ॥ श्री सिद्धाचल तीरथ केरो राजा ऋषभ जिनन्द | कीर्ति करे माक्षक सुनि ताहरी टालो भव भवफन्दा नाटारम्भ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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