Book Title: Mahatma Jati ka Sankshipta Itihas
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 82
________________ सिद्धाचल ना बासी सिद्धाचलना वासी जिनने लाखों प्रणाम जिनने लाखों प्रणाम । श्रादि जिनेश्वर सुखकर स्वामी । तुझ दर्शन थी शिवपद धामी ॥ थया के असंख्य जिनने लाखो प्रणाम जिनने लाखों प्रणाम ॥१॥ विमल गिरिना दर्शन करतां । भव भष ना तुम तिमिर हर्ता ॥ प्रानन्द अपार जिनने लाखों प्रणाम जिन ने लाखों प्रणाम ॥२॥ हूं पापी छू नीच गति गामी । कञ्चन गिरि नो शरणो पामी ॥ तरशु जरूर जिनने लाखों प्रणाम जिन ने लाखों प्रणाम ॥३॥ अणधार्या आ समय मां दर्शन । करता हृदय थयो अति निर्मल ॥ जीवन उजवाल जिनने लाखों प्रणाम जिनने लाखों प्रणाम ॥४॥ गोडी पाश्व जिनेश्वर केरी । करण प्रतिष्ठा विनती घनेरी ॥ दर्शन पाम्यो मानी जिनने लाखो प्रणांम जिनने लाखों प्रणाम । संवत श्रोगणीसे ने घरषे । शुद्ध हृदय थी कन्या दर्शन हरषे ॥ मल्यो ज्येष्ठ शुभमास जिनने लाखों प्रणाम जिनने लाखप्रणाम ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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