Book Title: Mahatma Jati ka Sankshipta Itihas
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown
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त्यां दूर दूर थी चीस कारमी साजन शाथी प्रावी । थंभी गया सऊ ढोल नगारा जान त्यां थंचावी ॥ पाकुल व्याकुल थई ने अहिं तहिं दौडे सहु नरनारी ! राजुल हैये पडी बीजली थई वेदना भारी ॥ प्रावी रही छे जान ज्यां मण्डप ने मोझार । नेम कुमारे शांभल्यो पशुओ नो पोकार ।। धामी प्रा चिचिारियो पूछता तत्काल । केम रडे प्रा मूगा प्राणी उत्तर द्यो ततकाल ॥ ए पशुश्री ना वध थाशे पछी भोजनिया रंधाशे । माजन माजन काजे एना भोजन थाल भराशे ॥ प्राण बचानो प्राण बचानो प्रभुजी मारा प्राण बचायो । जान तमारीश्रावे भले पण जान अमारी शिदने जलायो॥ प्राण बचायो करुणा सागर प्राण बचाओ-श्रावे आवे रे पाछा वलो पाछा बलो गरजे नेम कुमार । आशा दीधी ततक्षणे सुणी पशुओ नो पोकार ॥ मारे काजे अनन्त जीवनी हिंसा नथी सहवाली ! नथी परणवू नथी परणवू आ कतल नथी जोवाती ॥ धीमे धीमे जान पाछी पाहा पगला भरवा लागी। भ्रश के ध्रश के राजुल रडती पालव पाथरवा लागी ।। पाका नव जाशो हो प्रीतम पाछा नव जाशो । पालव पाथरी विनवू पाजे पाछा नव जाशो ॥ प्रीत करी ने परिहरशो पाछा नब जाशो ।
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