Book Title: Mahatma Jati ka Sankshipta Itihas
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 54
________________ ( ३३ ) भारत ही में ईश्वर न कुछ हो सदर मैं पैदा हूं और मरूं मै । मन में यह आरजू मगर हो । लिये यह सर हो । लिये जिगर हो ॥ ऐ मेरी जान भारत तेरे तेरे लिये ही जर हो तेरे गर देश की ही सेवा हो प्यारा धर्म मेरा । परमात्मा की तो फिर मेरी तरफ नजर हो ॥ ऐ मेरी जान भारत तेरे लिये यह सर हो । तेरे लिये ही जर हो तेरे लिए जिगर हो ॥ जीवन सकल तभी बस समझेगा साधु अपना । सेवा में मेरी माता सर मेरा गर नजर हो ॥ हिन्दोस्ता मेरा पसे मुर्दन भी होगा हश्र में यों ही बयां मेरा । मैं इस भारत की मिट्टी हूं यही हिन्दोस्तां मेरा ॥ मैं इस भारत के इक उनडे हुए खण्डहर का जर्रा हूं । यही पूरा पता मेरा यही नामो निशां मेरा ॥ खिजां के हाथ से मुरझाये जिस गुलशन के हैं पौधे । मैं उस गुलशन की बुलबुल हूं वही है गुलिस्ता मेरा ॥ कभी आबाद वह घर था किसी गुजरे जमाने में । हुआ क्या घर बस्ते गैर उजडा खानुमा मेरा ॥ अगर यह प्राण तेरे वास्ते जाये न ऐ भारत । तो इस हस्ती के तख्ते से मिटे नामो निशां मेरा ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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