Book Title: Mahatma Jati ka Sankshipta Itihas
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 55
________________ ( ३४ ) मैं तेरा हूं मड़ा तेरा रहूंगा बेबफा खादिम । तू ही है गुलिस्तां मेरा तूही जन्नत निशां भेरा ॥ मेरे सोने में तेरे प्रेम की अग्नि भडकती है । निगाहों में मेरे भारत तू ही है कुल जहां मेरा ॥ स्वागत गीत पाये भाज ॥ हमारे काज । साथ । धन भाग हमारे सज्जन आये उत्सव में हां व्याज | धन्य हैं हम वान्तक सारे दर्शन धन्य भाग्य हमारा दिवस आज का सरे गुरुजन आये सजन आये विद्वजन भी नम्र भाव से सत्र मिल नावे अपने अपने माथ | कर जोड के विनंती करते देव सुशिक्षा ग्रहण करें हम अबोध बालक मिटे मन का हम अज्ञानी प्रबोध बाल हैं आप हमारे ताज ॥ आशीश देवें प्रेम भाव में होवे फतह हमारे काज ॥ आप ॥ ताप । ठुकरा दो या प्यार करो देव तुम्हारे कई उपासक कई ढंग से आते हैं । मेवा में वहुमूल्य भेंट वे कई रंग से जाते हैं धूमधाम से साज बाज से वे मंदिर में आते हैं । मुक्तमणि बहुमूल्य वस्तुयें लाकर तुम्हें चढाते हैं ॥ मैं ही हूं गरीब इक ऐसा जो कुछ साथ न लाया हूँ । फिर भी साहस कर मंदिर में करने आया पूजन 忌 11 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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