Book Title: Mahatma Jati ka Sankshipta Itihas
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 53
________________ ( ३२ ) अन्यायी ने भारत का धन लूट लिया। जनताका सर पत्थर लेकर कूटदिया॥ भारत को कर दिया श्मसान समान । स्वर्ग बनाने इसे पधारे थे श्री गाँधी भगवान ॥ प्यारा हिन्दोस्तान हमारा प्यारा हिन्दोस्तान ॥ भारत माता ऐ मेरी जान भारत तेरे लिये यह सर हो । मेरे लिये ही जर हो तेरे लिए जिगर हो ॥ हिचकू न तेरी सेवा से मेरी जान भारत । गर्दन पे मेरी रक्खा शमसेर या तबर हो ॥ ऐ मेरी जान भारत तेरे लिये यह सर हो । तेरे लिये ही सर हो तेरे लिये जिगर हो ॥ गम जान के लिये भी मुझ को कभी न होगा। भारत तेरे लिये ही प्राती है काम गर हो । ऐ मेरी जान भारत तेरे लिये ये सर हो । तेरे लिये ही जर हो तेरे लिये जिगर हो ॥ किस्मत का तेरी अख्तर चमके फिर प्रासमां पर । सेवा में तेरी माता गर जिन्दगी बसर हो ॥ ऐ मेरी जान भारत तेरे लिये यह सर हो । तेरे लिये ही जर हो तेरे लिये जिगर हो ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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