Book Title: Mahatma Jati ka Sankshipta Itihas
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 56
________________ ( ३५ ) धूप दीप नैवेद्य नहीं है झांकी का श्रृंगार नहीं। हाय गले में पहिनाने को फूलों का भी हार नहीं ॥ स्तुति कैसे करूं किस स्वर से मेरे ही माधुरी नहीं । मन का भाव प्रकट करने को वाणी में चातुरि नहीं ॥ नहीं दान है नहीं दक्षिणा खाली हाथ चला आया। पूजा की भी विधि न जानें फिर भी नाथ चलााया ।। पूजा और पूजापः भुवर इली पुजारी को समझो। दान दक्षिणा और निछावर इसी भिखारी को समझो ॥ में उन्मत्त प्रेम का लोभी हृदय दिखाने आया. हूं । जो कुछ है बस यही पास है इसे चढाने आया हूं। चरणों पर करता हू अर्पण चाहो तो स्वीकार करो। यह तो वस्तु तुम्हारी ही है ठुकरा दो या प्यार करो॥ . देव तुम्हारे कई उपासक कई ग से आते हैं। सेवा में बहुमूल्य भेट वे कई रंग से लाते हैं । गुरुकुल गीत प्राणों से हमको प्यारा गुरुकुल हो हमारा । अज्ञानियों को भी सदज्ञान देने वाला ॥ मुनियों का जन्म दाता गुरुकुल हो हमारा । कट जाय सिर न झुकना यह मंत्र जपने वाले । वीरों का जन्मदाता गुरुकुल हो हमारा ॥ स्वाधीन दीक्षितों पर सब कुछ बहाने वाला । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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