Book Title: Mahatma Jati ka Sankshipta Itihas
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 70
________________ ( ४१ ) मालिक मेरे मन के तेरे दास बन के गुण सेवा जिन गुण भाके गुण सभी जोडना । मोह की मदिरा से भक्ति न छोडना ॥ गुण सभी जोडना ॥ भवोभव भम के गुण गाना सेवा से रंगना ॥ सेवा के खातिर मैं आयो हूं द्वार पर । अस्थिर होना मेरी नजर पर ॥ आयो हूं द्वार पर । जग घुम २ के । गाना । से रंगना ॥ तेरा भजन भज के सारा साज सज के । मेरे दिल को भक्ति से रंगना ॥ वीतरागी तुम हो मै हूं सरागी । सेवा में पाया प्रभु बडभागी मैं हूं सरागी ॥ गुण गाना सेवा में रंगना ॥ रंगीली मूरति को दिल में बिठा ली । गुणों की आली सुधा की प्याली मन में बिठा ली ॥ प्रात्म कमल खिला के ज्ञान लब्धि मिला के । गुण गाना सेवा से रंगना ॥ तर्ज- आजा मोरी बरबाद राजा-राजा, राजा मोरे जिनराज श्रय प्राण जीवन पियारे । तू एक है डूबती हुई नैया मेरी तारे ॥ राजा ऽ राजा० ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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