Book Title: Mahatma Jati ka Sankshipta Itihas
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 40
________________ मद में तू मस्ताना बनकर कर में डालेगी कडी। अब से तू ख्याल मन को दे प्रभु से लगा। प्राण पार उतार तुझको धर्म की नय्या अडी ॥ ३ ॥ मैं सादर शीश नमाता हूं मैं सादर शीश नमाता हूं भगवान तुम्हारे चरणों में। कुछ अपनी विनय सुनाता हूं भगवान तुम्हारे चरणों मैं॥ जिस २ जगती में भ्रमण करूं जो जो शरीर में ग्रहण करूं । तह कमल भृगवत रमण करूं भगवान तुम्हारे चरणों में ॥ सुख दुःखों की चिन्ता है नहीं परिवार छूठे परवाह नहीं। पतितों का हो कल्याण यही भगवान तुम्हारे चरणों में ॥ हे नाथ दीनबन्धु ! हे नाथ दीनवन्धु हे देव दुखहारी । ___ होवे सदैव हम पर करुणा नजर तुम्हारी ॥ सूरज सी ज्योति भरदो आत्मा उद्योत करदो। ___ सन्ताप ताप हर दो हे मोक्ष के बिहारी ॥ कर्तव्य हमने पाला इस दिन में पूर्ण अपना । त्रुटियां सभी क्षमा कर सर्वेश तेजधारी ॥ यह दिन हमारा भगवन बीता है श्रेष्ठ विधिसे । यह रातभी हो भगवन दुनियाको सौख्यकारी॥ निद्रा की गोद में जब करता हो जग बसेरा। सब रोग शोक जावे होवे न चोरी जारी ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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