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(२२)
क्या करूं? छोड जिनवर को दुनी से दिल लगा कर क्या करूं । हाथ हीरा मिल गया कंकर को ले कर क्या करूं ॥ मोह अन्धी रैन में चलते ही खाई ठोकरें । ज्ञान दिनकर देख फिर बत्ती जला कर क्या करूं ॥ जीवन बन के ताप में जलता फिरा कई काल से । कल्प छाया मिल गई छत्ता लगा कर क्या करूं ॥ गा रहा हूं प्रेम से प्रभु गुण तुम्हारे सामने । 'प्राण' जो हो प्रसन्न फिर औरों रिझा कर क्या करूं ॥
भावना दिन रात मेरी भावना दिन रात मेरी सब सुखी संसार हो । सत्य संयम शील का व्यवहार घर घर बार हो ॥ धर्म का प्रचार हो और देश छ उद्धार हो ।
और यह उजडा हुआ भारत चमन गुलजार हो । रोशनी से ज्ञान की संसार में प्रकाश हो । धर्म की तलवार से हिंसा का सत्यानाश हो ॥ रोग भय अरु शोक होवे दूर सब परमात्मा । कर सकें कल्याण ज्योति सब जगत की प्रात्मा ॥ भावना दिन रात मेरी सब सुखी संसार हो ॥
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