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(११) सुन्दर नयन मृगा को दीने बन २ फिरत उजारी ॥३॥ मूरख राजा राज करत है पंडित फिरत भिखारी ॥४॥ वैश्या प्रोढे शाल दुशाला पतिव्रत फिरत उघाडी ॥५॥
उठ जाग मुसाफिर भोर भई उठ जाग मुसाफिर भोर भई अब रैन कहां जो सोवत है। जो सोवत है वह खोवत है जो जागत है सो पावत हैं। टुक नींद से अंखिया खोल जरा और जिनवर से ध्यान लगा। यह प्रीत करण की रीत नहीं जग जागत है तू सोवत है॥१॥ नादान भुगत करणी अपनी ऐ पापी पाप में चैन कहां । जब पाप की गठडी शीश धरी तब शीश पकड क्यों रोवत है ॥२॥ जो काल करे वह आज कर से जो आज करे वह अब कर ले। अब चिडिया ने चुग खेत लिया फिर पछताये क्या होवत है ॥३॥
___ इस तन धन की कौन बडाई इस तन धन की कौन बडाई । देखत नयनों से मिट्टी मिलाई ॥ अपनी खातिर महल बनाया। पापही जाकर जंगल सोया ॥१॥
__ हाड जले जैसे लकडी की मोली । बाल जले जैसे घास की पोली ॥ कहत कबीर पुनो मेरे गुनिया ।
आप मुवै पीछे लुट गई दुनिया ॥
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