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(१५) जब मोह नींद आ जाती है जब पाप घटा छा जाती है। तुम मोक्ष मार्ग के कर्ता हो और राग द्वेष के हर्ता हो॥ तुम स्वयं भवोदधि तरता हो और भन्यजनों के तारक हो। जब शुक्ल ध्यान की ज्योति खिली और दुई का भेद मिटा सारा ॥ जब क्षायिक भाव दरस जावें तुम कर्म शत्रु संहारक हो ॥ तुम अलख अगोचर अविनाशी अविकर प्रतिन्द्रिय अघनाशी । तुम्ही सर्वज्ञ ज्ञानराशि तुम शांति सुधारस सञ्चारक हो ॥ अब समुद्धात द्वारा सारे ब्रह्मांड के व्यापक होते हैं। तुम ही ब्रह्मा तुम ही विष्णु तुम ही शंकर सुखकारक हो ॥ श्रो नाथ तुम्हारी भक्ति के सागर में गोते खाते हैं। वे डूबे हुए भी तिरते हैं तुम राम विश्व उद्धारक हो ।
__पार्श्व प्रभु तुम हम के सिरमौर पार्श्व प्रभु तुम हम के सिरमौर ।
तू मन मोहन विदधन स्वामि साहब चन्द चकोर ॥१॥ तू मुझ दिल की सुनेगा बाला तारोगे नाथ खरोर ॥२॥ तू मुझ पातम श्रानन्ददाता ध्याता हूं कुमर किसोर ॥३॥
प्रभु जय से मेरा मन राजी रहे प्रभु जय से मेरा मन राजी रहे । आठ पहर की चौंसठ घडियां दो घडियां जिन साजी ॥१॥
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