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करुणाकर ! करुणा कर आयो । धर्म फरहरा फिर फहरायो । पूरण प्रेम अभी बरसायो ।
हो जिससे स्वाधीन स्वदेश ।
जय जय प्यारे वीर जिनेश ॥ जग के सब जञ्जाल हटाओ । कुत्सित मग से पग हटवायो । रग रग स्वागत करती आओ।
'इन्द्र' वन्द्य जय धर्म धुरेश । जय जय प्यारे वीर जिनेश ॥
प्रेमी बन कर प्रेम से ईश्वर के गुण गाया कर प्रेमी बन कर प्रेम से जिनवर के गुण गाया कर । मन मंदिर में गाफिले दीपक रोज जलाया कर ॥ सोते में तो रात गुजारी दिन भर करता पाप रहा, इसी तरह बरबाद तू बन्दे करता अपने आप रहा, प्रातः उठ कर प्रेम से जिन मन्दिर में जाया कर ॥१॥ नरतन के चोले को पाना बच्चों का कोई खेल नहीं, जन्म जन्म के शुभ कर्मों का मिलता जब तक मेल नहीं, नर तन पाने के लिये उत्तम कर्म कमाया कर ॥२॥ भूखा प्यासा पंडा पडौसी तैंने रोटी खाई क्या,
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