Book Title: Mahatma Jati ka Sankshipta Itihas
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 29
________________ शुद्ध हूं मैं बुद्ध हूं और निर्यिकारी नित्य हू । पाप बन्धन से प्रभो मुझको अलग कर दीजिये। कर्म द्वारा कर्म की अंजीर को मैं तोड दूं । मोह रिपु को जीत लूं ऐसा सुझे वर दीजिये। कर्तव्य के मैदान में मर २ के जीना सीख लूं । हो अहिंसा का धनुष और शांतिका वर दीजिये। विश्व की मरुभूमि में प्यासे तडफते जीव जो। प्यास मैं उनकी बुझा दूं प्रेम का जल दीजिये ॥ ब्रह्मचारी बन के मैं संसार की सेवा करूं । द्वादशागम का हमें उपदेश हितकर दीजिये ॥ बन के गजसुकमाल सा समता से छोडूं देह मैं। पीके अमृत भक्तिका वह शक्ति जिनवर दीजिये। वासना घुसने न पावे प्रात्म मंदिर में कभी । राम तुझमें दिन रमा दूं मोक्ष का फल दीजिये ॥ जय जय प्यारे वीर जिनेश जय जय 'प्यारे वीर जिनेश । कामारे जग तारन हारे हो । मोह महा मद मारन वारे ॥ कर्म कुलाचल कुलिश जिनेश ॥ जय जय प्यारे बीर जिनेश ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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