Book Title: Mahatma Jati ka Sankshipta Itihas
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 27
________________ बोल उठे जयहिन्द बोल उठे जयहिन्द मचल गये सेनानी । ऐ हरियाला देश कभी दुनिया का ताज था । सुखिया थी हिन्द हिन्द वालों का राज था ॥ गोरा गुलाम आया रोटी के काज था । आपस में फूट डाल छीना ये ताज था ॥ कर गया बेईमानी ॥ बोल उठे... गोरी गोरी टोली जो भारत में आई थी ! मीठी मीठी बोली बोल माया फैलाई थी ॥ सत्तावन के सन में जब जननी घबराई थी । लन्दन तक गौरों की टोली चकराई थी ॥ यू बोली महारानी बोल । उठे" भारत निवासियों यह भारत तुम्हारा है । बोली विक्टोरिया ये लन्दन हमारा है ॥ भारत स्वाधीन करने हमने विचारा है ! आपस में प्रेम करो भारत सिरदारा है ॥ तुम्हारी रजधानी ! बोल उठे. चौदह के सन में जब जर्मन ने वार किया । लन्दन के गौरों ने तुम से इकरार किया ॥ देंगे स्वराज्य ऐसा कह के तय्यार किया । जलिया वाले बाग बीच गोली का वार किया । करी खींचातानी ॥ पोल उठे." Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120