________________ करने श्रीसिद्धक्षेत्र तीर्थाधिराज श्रीशत्रुजय गिरिराजकी छायामें जानेकी अभिलाषा थी, किन्तु हमारे समुदाय के 16 पूज्य मुनिवरोंको वैशाख सुदि 3 अक्षयतृतीयाके दिन अमदावादमें पन्न्यास पदार्पण करनेका निश्चय हुआ था, उस अवसर पर हमारे परम गुरुदेव शासनसम्राट् का सारा शिष्य समुदाय अमदावादमें एकत्र होनेके कारण पारणा निमित्तक श्रीशत्रुजयके प्रति विहार करनेका विचार मुल्तवी रखा / पन्न्यास 'पदार्पण निमित्तक महोत्सव, एवं शासनप्रभावना श्रीजैनतत्त्व विवेचक सभाकी तरफसे अच्छी तरह हुई / मेरा वर्षांतपका पारणा निमित्तक बम्बईसे बालीनिवासी शाह मुलचंदजी हजारीमलजी आये थे / पूर्ण उत्साहसे मेरा वर्षांतपका पारणा अमदावादमें ही हुआ / ___ इस पुस्तकको शिव छपवाने का विचार 4-6 माससे चल रहा था। पं० अमृतलालजीने प्रेस संबंधी कार्य संभालना स्वीकार किया, बाद श्रावण मासमें पुस्तक छपवाना आरंभ किया गया, क्रमशः पांच मासमें ही प्रथम भाग छपचूका, शीघ्रताके कारण कोइ कोइ जगह शायद दृष्टिदोषसे और यंत्र-प्रेसदोषसे त्रुटिया रह गई हो, वह सुधार कर पढे क्योंकी सज्जन सदा हंसकी तरह सारग्राही होते हैं / कोइ विशिष्ट त्रुटि दिखाइ दे तो हमें सूचित करे जिससे पुनरावृत्तिके समय सुधारी जा सके। ___ इस पुस्तककी संयोजनामें मुझे अनेक हाथ सहायक हुए है, जो जो महानुभावोले हमे थोडी या बहुत किसीभी प्रकारकी मदद-सहाय मिली है उनके हम ऋणी है / इस पुस्तककी प्रेस कोपीको शिरोही निवासी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org