________________ सम्राट्र के जन्मस्थानमें ही चार मञ्जिलका उन्नत गगनसे बातें करता हुआ श्रीनेमिविहार-देवगुरुमंदिर करीब 20 वर्षोसे तैयार हो रहा था उसकी प्रतिष्ठा संवत् 2006 के फागण मासमें करनेका निर्णय हुआ, उस उत्सवमें जानेके लिये मैंने विहारकी तैयारी की किन्तु एकाएक मेरे विद्यागुरु पू० मुनिवर्यश्री रामविजयजी म. सा. के दूसरे नेत्रमें मोतीयां ओपरेशन द्वारा उतारनेका निश्चय किया गया उस कारणसे मेरा महुवाके प्रति जानेका विहार बंध रहा। वि० सं० 2006 के फागण वदि अष्टमी श्रीआदिनाथप्रभुके दीक्षा कल्याणक दिनसे मैंने पूज्य मुनिवर्यश्री रामविजयजी महाराजकी शुभ निश्रामें वर्षांतप करना आरंभ किया, पूज्यश्रीके शुभ आशीर्वादसे ज्ञान-ध्यानपूर्वक वर्षीतप चल रहा था। वि० सं० 2006 के चातुर्मासके लिये श्रीसंघके आगेवानोकी विनंतिसे पू० गुरुदेव पू० आ० श्रीविजयामृतसूरीश्वरजी महाराज साहब अमदावाद पधारे। इस चातुर्मासमें पू० आचार्यदेवकी शुभ निश्रामें मैंने श्रीअनुयोगद्वारसूत्रकी वाचना तथा श्रीआचारांगसूत्र के योगोद्वहन हुए और पूज्य आचार्य महाराजकी शुभ निश्रामें शासन प्रभावनाके अनेक शुभ कार्य पूर्ण उत्साहसे श्रीसंघने कीये, तथा पू० मुनिवर्य रामविजयजी महाराज आदि तीन पू० मुनिवरोको गणि पदापर्ण निमित्तक श्रीसंघने महोत्सव कीया, कार्तिक वदि छट्टको पू० गुरुदेव के पवित्र हस्तकमलोसें पांजरापोल उपाश्रय में तीनो पूज्य मुनिवरोंको गणिपदप्रदान कीया गया / सं० 2006 का चातुर्मास पूर्ण होते मेरे वर्षांतपका पारणा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org