Book Title: Mahamantra ki Anupreksha
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Mangal Prakashan Mandir

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Page 16
________________ 8 मुक्ति की भावना मे ते प्रकट नमस्कृति ऋणमुक्ति यानि मच्चे अर्थमेवमुक्ति को प्राप्त करवाती है । नमस्कार मंत्र द्वारा पंचमंगल महाश्रु तस्य रुप श्रुत ज्ञान का आराधन होता है । उससे होती पचपरमेष्ठि की स्तुति द्वारा सम्यक् दर्शन गुण का आराधन होता है एव त्रिकरण योग से होती नमन क्रिया द्वारा आशिक चारित्रगुण का आराधन होता है । ज्ञानगुण पाप पुण्य को समझाता है, दर्शनगुण पाप की गर्दा एव पुण्य की अनुमोदना करवाता है एव चारित्रगुण पाप का परिहार तथा धम का सेवन करवाता है | ज्ञान से धर्म मंगल समझा जाता है, दर्शन से वह श्रद्धेय होता है एव चारित्र से थम मंगल जीवन में जीया जाता है । गुणो मे उपादेयता की वृद्धि ही सच्ची श्रद्धा है । उपादेयता की बुद्धि गुणो के प्रति उपेक्षा बुद्धि का नाश करती है । गुणो के भण्डार होने से पच परमेष्ठि को किया गया नमस्कार गुणो मे उपादेयता की वृद्धि को पुष्ट करता है । पत्र परमेष्ठि ने पाँच विपयो को त्यागा है चार कपायो का जीता है, वे पांच महाव्रत एव पाँच ग्राचारो से सम्पन्न है । ग्राठ प्रवचनमाता एव अठारह हजार णीलाग रथ के वाहक हैं । उनको नमस्कार करने मे उनमे विद्यमान सभी गुणों को नमस्कार होता है । परिणाम स्वरूप गुणो के प्रति अनुकूलता की बुद्धि एव दोपो के प्रति प्रतिकूलता को सन्मति जाग्रत होती है । राग, द्वेष एवं मोह का क्षय नवपदयुक्त नमस्कार से नवम पाप स्थान लोभ एव अठारहवाँ पाप स्थान मिथ्यात्वशल्य नष्ट होते है । नमस्कार सासारिक लोभ का शत्रु है क्योकि इसमे जिन्हे नमस्कार किया

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