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भाव संकोच अर्थ मे है। द्रव्य-संकोच हाथ, सिर, पांव आदि का नियमन एव भाव-सकोच मन का विशुद्ध व्यापार है ।
दूसरे प्रकार से नमो स्तुति, स्मृति एव ध्यानपरक तथा दर्शन, स्पर्शन एव प्राप्ति कारक भी है । स्तुति द्वारस नाम ग्रहण, स्मृति द्वारा अर्थ-भावन एक ध्यान द्वारा एकाग्र चिन्तन होता है । दर्शन द्वारा साक्षात्करण, स्पर्शन द्वारा विश्रान्तिगमन एवं प्राप्ति द्वारा स्वमवेद्य-अनुभवन भी होता है। नाम ग्रहण आदि द्वारा द्रव्यपूजा एव अर्थभावन, एकाग्र चिन्तन तथा साक्षात्करणादि द्वारा भाव पूजा होती है । ____ जिस प्रकार जल द्वारा दाह का शमन, तृषा का निवारण एव पक का क्षालन होता है वैसे 'नमो' पद के अर्थ की पुन पुन' भावना द्वारा कषाय के दाह का शमन होता है विपय की तृषा का निवारण होता है एव कर्म का पक क्षालित हो जाता है। जैसे अन्न द्वारा क्षुधा की गान्ति, शरीर की तुष्टि एव बल की पुष्टि होती है वैसे ही 'नमो' पद द्वारा विषय-क्षुधा का गमन, आत्मा के सतोष आदि गुणों की तुष्टि तथा प्रात्मा के तलपाय-पराक्रम आदि गुणों की पुष्टि होती है।
ऋण मुक्ति का मुख्य साधन नमस्कार
मानव जीवन का सच्चा ध्येय ऋणमुक्ति है । ऋण मुक्ति का मुख्य साधन नमस्कार है नमस्कार । विवेक ज्ञान का फल है एव विवेक ज्ञान समाहित चित्त का परिणाम है। परमेष्ठि स्मरण से चित्त समाधिवान् बनता है । परमेष्ठि भगवान् का यह सकल्प है कि सभी साधक समाहित चित्तवाले बने । अत उनका स्मरण एव नाम ग्रहण साधक के चित्त को समाधिवान बनाता है । समाधियुक्त चित्त मे विवेक स्फुरित होता है एव विवेकी चित्त मे ऋणमुक्ति की भावना प्रकट होती है । ऋण