Book Title: Madanjuddh Kavya
Author(s): Buchraj Mahakavi, Vidyavati Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 18
________________ २४ मदनजुद्ध काव्य सके हैं । इसलिा है मूढ़ जीव, यदि नूने मनुष्य जन्म धारण किया है तो कोई ऐसा उपाय कर जिससं काम की ज्वाला शान्त हो सके । ज्ञानार्णव के 21वें प्रकरण में बतलाया गया है कि विद्वानों ने आत्मा को ही शिव, वैनतेय और स्मर कहा है । मुनिजनों और मोक्ष-लक्ष्मी का वरण करने वाले साधक पुरुषों को काम अपने धनुष-बाण का लक्ष्य बनाए हार है । वह अपनी विदग्धा पत्नी रनि के साथ विविध क्रीड़ा में आसक्त है । वसन्त उसका मित्र है. जो आन-मंजरी द्वारा अपने आगमन को सूचित करता है, तथा कोकिलों की स्वरलहरी, मधुपों की गुंजार और सुगन्धित मलयानिल के द्वारा लोगों में उल्लास भर देता है । वह काम. स्वर्ग और मोक्ष के द्वार को बन्द करने वाली अर्गला हैं । काम के स्वरूप का चिन्तन करने से यह आत्मा काम विषय का अनुभव करने लगता है । इस प्रकार उक्त दो प्रकरणों में कवि शुभचन्द्र ने "काम पर" पर्याप्त प्रकाश डाला है और उसके स्वरूप को स्पष्ट किया है । मयणजुद्ध की कथा के स्रोन का जहाँ नक प्रश्न है वह शुभचन्द्रकृत "ज्ञानार्णव', हरिदेवकृत “मयणपराजय चरिउ" और नागदेवकृत मदन पराजय है । कवि बूचराज ने मयणजुद्ध में कामदेव के समस्त गुण-धर्मों का वर्णन ज्ञानार्णव के अनुरूप किया है । उन्होंने काम के कुसुमकोवंड, भ्रमर. पणच, पुष्प, बाण आदि पंचबाण. रतिस्त्री, महिलाओं ने द्वारा लोगय शिकार और पनियों के मा को चलायमान कर देना, देवों और दानवों को भी अपने स्थान से डिगा देना, ब्रह्मा, विष्णु और शिव को अपनी प्रवृत्तियों के अधीन कर लेना एवं मुक्ति प्राप्त करने के इच्छुक साधकों के प्रयत्नों में बाधा उत्पन्न करना आदि सभी वृत्तान्त दोनों में समान रूप से उपलभ्य हैं। इसी प्रकार कामदेव की सेना में प्रबल योद्धाओं का नाम जिस प्रकार ज्ञानार्णव में वर्णित है उसी प्रकार मयणजुद्ध में भी उपलब्ध है । जैसे-राग, द्वेष, रोष, मद, अज्ञान, मिथ्यात्व, कषाय, कुशील आर्त रौद्रध्यान आदि' । मयणजुद्ध कव्य की कथावस्तु में अन्तर--- मयणजुद्ध की कथावस्तु और संस्कृत तथा अपभ्रंश के मदनपराजयचरित की कथावस्तु में कुछ अन्तर उपलब्ध है । जैसे मयणजुद्ध मे कथा का प्रारम्भ करने हुए कवि ने स्पष्ट किया है कि आदीश्वर प्रभु ने जुगलाधर्म का निवारण किया, जैनधर्म का उद्धार किया, जो संसार को नारने वाले हैं, वे आदीश्वर प्रभु सुरेन्द्र द्वारा वन्दित हैं । उन्होंने किस प्रकार रतिपति पर विजय प्राप्त की, उसका मैं वर्णन कर रहा हूँ। 1. ज्ञानार्णव 2019 2. नयागः नय. 37-51, ज्ञाना व 11/28-29-48 । मया' पद्म० 32. ज्ञानार्णय, 7-9 ।

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