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मदनजुद्ध काव्य "आयउ पहिले अज्ञान घोरु तिहि ज्ञानि पछाडिङ करिवि जोरु पिथ्यान उटिङ नब अनि करालु ।
जिनि जीव रुलाये नन्न कालु (103) गाथाछन्द-.
यह छन्द प्राकृत-काव्य की आम्मा माना गया है । अपभ्रंश-काल तक इसका प्रयोग प्रचुरमात्रा में होता आया है । प्राकृत पैंगलम् के अनुसार यह प्रथम चरण में न्यारह. द्वितीय चरण में अठारह, तृतीय चरण में तेरह और चतुर्थ चरण में पन्द्रह मात्राओं से युक्त रहता है। संस्कृताचार्यों ने इसे 'आर्या'' छन्द कहा हैं । प्रस्तुत रचना में इस छंद के 11 पद्य हैं । इसका एक उदाहरण यहाँ प्रस्तुत है
"गह पुनपुरी नामों राजा तहं सत्तु करइ थिरु रज्जो ।
नहि लेइ पुत्तु पहुत्ती बहु आदरु पाइओ तेणि ।। (10) रोड छन्द
इस कृति में 4 पद्य इस छन्द में रचित हैं । यह एक मात्रिक छन्द है । इस छन्द में चार चरण होने हैं । प्रत्येक चरण में 24 भात्राएं होती हैं । 11, 7, और 6 पात्रा पर शनि होती है, और चरवार में दो लधु की योजना होती है । यथा
भद्र प्रकृति जे होहिं ध्यानि आरति न चहुट्टहि । अणुकंपा चिनि करहि विनय सतभाई पयट्टहिं । सदाकाल परिणाम मनि न राहि मच्छर गति ।
कहियङ हम सरवत्ति ति नर पावर्हि मानुष गति ।। (144) एकावली-छन्द--
प्रस्तुत रचना में इस छन्द के 4 पद्म लिखित हैं । यह एक मात्रिक छन्द हैं । इसके चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 26 मात्राएं होती हैं । चरण के अन्त में गुरु और लघु रहते हैं 1 यथा
''निलटास् बांची बोलियउ चढि सुफ्फल विरखह ठाइ ।
इकु निउल जुअलु पलोइयउ सावडु चडियउ आइ ।। (99) गंगिक्का
प्रस्तुत कृति में इस छन्द के 11 पद्य उपलब्ध हैं । यह एक मात्रिक छन्द है । इसके प्रत्येक चरण में 40 मात्राएं होती हैं । 13 मात्रा, 11 मात्रा, १ मावा और 7 मात्रा पर यति होनी है । दो-दो चरणों में तुकबन्दी की नियोजना रहती है । चरणान्न सगण (113) की योजना रहती है । ! • पैः पृ.