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मदनजुद्ध काव्य
कलाहु अदेसा छदमु तह समरु सबलु गरजाइ । अइसी राजा मोह की सभा जुड़ी सब आइ ।। ३२।।
अर्थ-खबर करने से सबसे पहले क्रोध (रोष) आया । उसका साथी झूठ भी आया और शोक, संताप, संकल्प, विकल्प भी आए । चिन्ता सहित आवर्त (आर्त्त) दुःख-कलेश, कुध्यान (रौद्र) भी दौड़ा । कलह, अदेस्वा (ईर्ष्या) छदम (छल) तथा स्मर (काम) भी आए | सबल (बलसहित) गरजने लगे । सब लोगोंके जुट (इकट्ठा) जानेसे राजा मोहकी ऐसी सभा जुड़ गई ।
व्याख्या-राजा मोहकी सभामें अनेक वीर एकत्रित होकर गर्जना करने लगें । रोष जहाँ होता है, वहाँ मुखसे झूठे वचन ही निकलते हैं। अत: रोषके साथ झुठ भी आया । (शोक) इष्ट के वियोग में होने वाले परिणाम संताप (पश्चाताप) संकल्प (मिथ्यात्व सहित अभिमान-अहंकार) और विकल्प (ममत्वभाव) आवर्त्त, (आर्त, ध्यान) चिन्ता सहित, दुःख, क्लेश, कुध्यान (रौद्र) नामके पीर अपने साथियों सहित उपस्थित हो गए । साथ ही कलह, अदेस्वा (असूया), छदम (दल-कपट अज्ञान) तथा स्मर (पुरुषवेद स्त्रीवेद, नपुंसक वेद, राग) प्रभृति वीर भी अपने परिवार सहित राजा मोहकी सभा में एकत्रित हो गए । दोहा :
करिवि सभा तब मोह भडु इस चिंतिइ मनमाहिं । जल लगु जिवइ विवेकु यहु तब लगु हम सुख नाहिं ।।३३।।
अर्थ--तब मोहने अपने सभी वीर भटोंकी सभाकी । वह अपने मनमें इसप्रकार विचार करने लगा कि जब तक विवेक जीवित है, तब तक हमकों सुख नहीं हो सकता ।
व्याख्या-राजा मोहने सभाको सम्बोधित करते हुए कहा कि हमारा प्रबल शत्रु विवेक है । हमें उसके साथ युद्ध करना है और उसे मार भगाना है । जब तक वह जिंदा रहेगा हम सुखसे नहीं रह सकते हैं । मोहकी बातोंको सुनकर सभी वीर एक साथ कहने लगे कि महाराज, हमें आज्ञा दीजिए, जिससे कि अभी हम उसको नष्ट-भ्रष्ट कर दें । वह श्वास लेते-लेते नष्ट हो जायगा । वीरोंके वचनोंको सुनकर राजा मोह मन ही मन विचार करने लगा कि कौन सा उपाय किया जाय, जिससे विवेक जीवित न रह सके ।
वीर मन्मथ (मदन) की उद्घोषणा मोह नातह वयण सुणि एम १. ग. दहु