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मदरजुद्र काव्य
और राजाको भी समृद्धिशाली बनाती है । ऐसी गायोंको कामधेनु कहा जाता है । कोई राजा तलवार लिए हए सामनेसे प्रतोलीमें प्रवेश कर रहा दिखलाई देना प्रभुत्वको सूचित करता है ।
गिलटासु वांवइ बोलियउ चढ़ि सुफ्फल विरखह ठाइ इकु निउल जुअलु पत्लोइयउ साखडू चडियउ आइ दहि भरे भाजन गुजरी सनमुख पाहूंसी आई गरजंतु सुणियउ केहरी सिरि घरिउ चडर उठाई ।।९९।।
अर्थ (यह भी देखा कि) निलटा (कोकिल) आम्रफलके वृक्ष पर चढ़ी है और वहां बैठकर बोल रही हैं । एक नेवला-युगल (जोड़ा) को सर्पके ऊपर चढ़ा देखा तभी दहीसे भरे हुए पात्र लिए गूजरी (ग्वालिने) सामने आ पहुँची । अपनी पूँछ रूपी चैवरको उठाकर सिर पर रखे हुए गरजते केहरी (सिंह) को सुना और देखा (इस प्रकार जिनेश्वर ने ये चार शकुन और देखे) ।
व्याख्या--वसन्त ऋतुमें आम्रमंजरीको खानेके पश्चात् ही कोयलका गला खलता है और वे मधुर स्वरमें ककने लगती हैं । यहाँ भी वसन्त ऋतुका समय है, कोयलोंका मधुर स्वर शुभ अवसरकी सूचना देता है। नकुलोंके जोडेका सर्प पर चढ़ना अर्थात् सर्पपर विजय प्राप्त करना, आदिदेवकी विजयको अग्रिम सूचना देना है । गोपियों (ग्वालिनों) को दहीका पात्र लिए हुए देखना कार्यकी सिद्धि कराने वाला है तथा सिंहको अपनी पंछ चँवरकी तरह पीठ पर रखे हुए देखना और उसकी गर्जना सुनना अति उत्तम फलको प्राप्त करानेवाला है । इस प्रकारके शुभ शकुन प्रभुकी यात्रामें हुए ।
दुइ दिट्ठ गयवर अति सुउज्जल करत भल गम्जार वर आँव फल नारिंग निहाले अवरु कुसुमह हार सब सुपण सवण सुजोग उत्तम लद्ध पोसा जाप जे नीति मारगि पुरुष चालहि तिन्हरु सीझहिं काम ।।१०।।
अर्थ-(और भी) अत्यन्त उज्ज्वल दो हाथियों को भली (उत्तम) गर्जना करते हुए देखा । सुन्दर आम (आम्रफल) नारंग (सन्तरा) फल
और पुष्पहार भी देखा । (उन्होने) ये सब स्वम, शकुन और उत्तम सुयोग्य जहाज के समान प्राप्त किए जिस प्रकार समुद्र या नदी पार करने के लिए जहाज मिल जाता है ठीक उसी प्रकार जो पुरुष न्याय-नीति मार्ग से चलते हैं उनके सभी कार्य सिद्ध (सफल) होते हैं ।
व्याख्या- हाथी को भगवानकी माताने दूसरे स्वप्रमें देखा था । चलते