Book Title: Madanjuddh Kavya
Author(s): Buchraj Mahakavi, Vidyavati Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 148
________________ ९६ मदनजुद्ध काव्य अभाव बतलाया गया है जिससे कि मोक्ष मार्ग चल पड़ा । शुद्ध धेयण हुव मनु सहजि महि खिल्लिय भ्रम्म दह तह समाधि आगमु जणायच रवि कोडि अनंतगुण प्रगट ज्योति केवलु दिपाय सुरपति नरपति नागपति मिलिय सेन सब आइ आशा फेरण देसमहि दियो विबेकु पठाइ ।। १३८ ।। अर्थ - चेतन ( परतन्त्रता) से छूटकर सहज (स्वाभाविक ) मनु (ज्ञानी) हो गया । पृथिवी पर दशधर्म ( उत्तमक्षमादि) खिल पड़े तथा समाधियो (आगम) को जन्म दिया। कोटि सूर्यों से अनन्त गुणी ज्योतिवाला केवल ज्ञान प्रकट हुआ। सुरपति, नरपति नागपति आदि सभी अपनी सेना सहित मिलकर आ गए । ( प्रभु ने) विवेक को सभी देशों में आज्ञा (घोषणा) फैलाने के लिए भेज दिया । व्याख्या - मनु वह कहलाता है, जो संसार में सर्व प्रथम मानवता की शिक्षा देता है । वह सब कलाओं का ज्ञाता होता है । उत्तम रीतियों का प्रवर्तक होता है, सर्व पुरुषों में प्रधान पुरुष होता है । यहाँ चेतन १५वाँ मनु ऋषभजिनेन्द्र है । जिन्होने असि, मसि, कृषि वाणिज्यरूप आजीविका षट् कर्मों द्वारा अजीविका सिखाई । यह कार्य उन्होने गृहस्थ जीवन में दिया । फिर उन्होने सर्वपरिग्रह का त्याग कर तपश्चरण किया जिससे ४ घातिया कर्म नष्ट हुए । तब मोह के फंदे से छूटा चेतन केवल ज्ञान रूपी सूर्य से दैदीप्यमान हो गया । उसका तेज करोड़ों सूर्यो से भी अधिक था। प्रभु को केवल ज्ञान प्रकट हो जाने पर सभी कार्य स्वतः होने लगते हैं । मनुष्यलोक में और तिर्यचों के पास घोषणा करने के लिए विवेक को भेजा गया किन्तु स्वर्ग लोक में जाना संभव नहीं है अतः वहाँ अपने आप ही सिंहनाद, घंटानाद एवं शंखनाद के द्वारा प्रभु के केवलज्ञान प्राप्ति की घोषणा हो जाती है । सभी देवगण अपने परिवारों सहित प्रभु की अभ्यर्थना के लिए एकत्रित हो गए । इस केवलज्ञान की अपार महिमा है, सूर्य तो केवल एक लोक को प्रकाशित करता है किन्तु केवलज्ञान तीनों लोकों एवं तीनों कालों की बातों को प्रकट करता है । बड़े पुरुषों को यही महिमा है कि उनका कार्य आगे से आगे स्वयं होने लगता हैं । उनके पुण्यके परमाणु स्वयं फैलते हैं, जैसे घंटा आदि बजने लगते हैं, जैसे कि टेलिफोन की घंटी बज जाती हैं । अब सर्वत्र शुभ परमाणुओं का संचार होने लगा ।

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