Book Title: Madanjuddh Kavya
Author(s): Buchraj Mahakavi, Vidyavati Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 161
________________ मदनजुद्ध काव्य के । किसी मो अवस्था पं नो अबडाला निशंक आन्मा बन उगना है । कुलमद, जातिमद प्रभुतम्मद, धनमद, बलमद, रूपमद, ज्ञानमद और तपमद । इन आठ प्रकार के मद का त्याग करने से साधु को विश्व बन्धुता प्राप्त हो जाती हैं । उसकी आत्मा महान बन जाती हैं । मन् वचन,काय और कृत, कारित, अनुमोदना के भेद से नौ प्रकार का अब्रह्म होता हैं । वह साक्षात् विषयों में पतन है । अत: इनका त्याग करो । दस प्रकार के मिथ्यात्व या असत्य वचन हैं । श्रद्धाओं वचनों के द्वारा ही सुरुष की परीक्षा होती हैं । बचन को हिलमित रूप बोलना वचन भाषावर्गणा है । शरीर और आत्मा के प्रयत्नों से निकले वचन जीव के कहलाते हे । यह वचन-बल एक प्राण है । सत्य वचन से धर्म की प्रभावना होती है । इसलिए आदीश प्रभु ने साधुओं को छोड़ने योग्ब इन दोषों को कहा है । इकु वसिकरि आतमउ विन्नि थावर तस पालहू आराहहु तियरयण णाणि चउसरण निहालगु करहु पंच आघार दब्य छह विद्धि ने लिज्जहु सत्त सुत्त नय जाणि मातु अड समइ गहिज्जहु नव वंभ-वाडि दिइ राखियइ दसलक्खण घम्मिहि रमाहु इम जिणु भासह मुणिवर सुणाह गति न चारि इण परिभमाह ।।१५५।। अर्थ- पहला-आत्माको वश में करो | दूसरा--स्थावर और उस जीवों की रक्षा करो । ३. रत्नत्रय ज्ञान की आराधना करो । ४. अर्हन्त, सिद्ध, साधु और केवल प्रज्ञ, धर्म ही शरण है, उसको देखो । ५. दर्शन, ज्ञान, चारित्र तप और विनय इन पाँच आचारों को सम्हालो । ६. द्रव्य छह ही हैं, छह से अधिक वृद्धि न लेना । ७. सात सूत्रोक्त नयो को जानो । ८. आठ प्रवचन माता कही गई है, इन्हें आगम से ग्रहण करना। ९. शील की नववाड़ हैं, उन्हें दृढ़ रखना तथा १० दशलक्षण धर्म में रमण करना । इस प्रकार जिनेन्द्र देव कहते हैं कि हे मुनिवर सुनो (उपर्युक्त गुणोको ग्रहण करने से) इनसे चारो गतियों का भ्रमाग छूट जायेगा । व्याख्या-आत्मा को वश में करने का अर्थ उसे स्वाधीन करना है । अभी आत्मा परवश में है । साधु का कर्त्तव्य है कि वह उसे निर्विकार. निर्विकल्प एवं अविनाशी बनाये । स्थावर और त्रस-जीव सब अपने ही तुल्य होते हैं । उनकी रक्षा करना साधु का कर्तव्य है । अपनी किसी भी क्रिया से कोई बाधा न पहुंचाये, ऐसा आचरण करें । आत्मा का

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