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मदनजुद्ध काव्य
है । उसका अपात होने से हानि : उ क साप होते है । पदार्थों के झलकने को ज्ञान कहते हैं, उस झलकन सहित आत्मा की झलकन
को दर्शन कहते हैं । पदार्थ सभी स्वयं ही आकार दे देते हैं । वहाँ • कोई विकल्प नहीं है ।
वहाँ मृत्यु रूप काल नहीं है । मृत्यु तो आयु पूर्ण होने से होती है । आयु है ही नहीं मरण कैसा? स्वकाल है, सो स्वभाव का अन्त न होने से परिणमन का अन्त नहीं है । अतः अनन्त काल तक एक रूप ही रहते हैं । गमन का कारण धर्मास्ति न होने से उनमें आगे जाने की शक्ति नहीं इसलिये वहीं ठहर जाते हैं । उस स्थान का नाम शिवपूरी
इस प्रकार यह जीव कर्मों से मुक्त है परन्तु ज्ञानादि गुणों से अमुक्त है । ऐसा मुक्तामुक्त रूप हैं । इस प्रकार से आदि प्रभु ऋषभ जिनेश शिवपुरी गये । वस्तु छन्द :
राय विक्कम तणव संवत्तु नव्वासिय पनरसय सरदरुति आसउज वखाणहू तिथि पडिवा सकुल पख सनिवासरु कर नखितु जाणाहु । तिसि दिन वह पसंठियउ मदनुजुद्ध सविसेसु कहत पड़त निसुणत नरह जयड स्वामि रिसहेस ।।१५९।।
अर्थ-विक्रम राजा सम्बन्धी संवत् १५८९ था । शरद ऋतु थी, आश्विन का महीना कहा गया है । (उस दिन) तिथी प्रथमा (एकम) थी। शुक्ल पक्ष, शनिवार का दिन और कर (हस्त) नक्षत्र था । उसी दिन यह मदनयुद्ध नामक का विशेष ग्रन्थ वल्ह (बूचराज) कवि ने बनाकर पूर्ण (समाप्त) किया । जो इस ग्रन्थ को कहने, पढ़ने और सनने वाले मनुष्य हैं, उनको श्री ऋषभेश स्वामी जयवंत करें । (संसार के दु:खों को दूर कर मुक्ति स्थान प्रदान करें) | इस प्रकार यह मदन युद्ध नामका ग्रन्थ समाप्त हुआ ।
व्याख्या—इस प्रकार यह मदनयुद्ध नामका लघु ग्रन्थ समाप्त हुआ। इसके रचयिता वुल्ह बूचराज नामके उत्कृष्ट कवि हैं । यह ग्रन्थ देखने में लघु है लेकिन इसके अर्थ में गम्भीरता है ।
उन्होने इस ग्रन्थ की रचना अपने मन, वचन और काय की सफलता के लिए की है । इसका फल कर्मों का क्षय करके सुख प्राप्त करना