Book Title: Madanjuddh Kavya
Author(s): Buchraj Mahakavi, Vidyavati Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 150
________________ मदनजुद्ध काव्य एवं श्राविका) स्वर्गवासी देवी-देवी । पातालवासी देव-देवा, मनुष्य-मानुषी, तिर्यंच-तिर्यची आदि सभी मिलकर आए । बारह परिषद (सभा) में सभी अपने-अपने स्थान पर बैठकर मॉडकर इकट्ठे हुए । (आदीश्वर जिन की) निर्मल अमृतमयी वाणी सुनकर सभी के हृदय में शुभ ध्यान उत्पन्न हो गया । भव्यजीवों के मन रूपी ग्रह को पकड़कर (सभी के मन को स्थिर करके) स्वामी ऋषभदेव ने व्याख्यान किया । व्याख्या-जहाँ भगवान विराजते हैं, वहीं समवशरण सभा की रचना होती है । सभी भव्यजीव एकत्रित होकर १२ सभाओं में बैठते हैं । प्रथमसभा में मनि और गणधर । द्वितीयसभा में आर्यिका और नारियाँ । तृतीय सभा में तिर्यच निर्वचनी । चतुर्थ सभा में पुरुष वर्ग | पंचम सभा में कल्पवासी देव । षष्ठी सभा में कल्पवासिनी देवियाँ । सप्तमी सभा में ज्योतिषी देव । आठवीं सभा में ज्योतिषी देवियाँ । ग्यारहवीं सभा में भवनवासी देव । बारहवीं सभा में भवनवासी देवियाँ इस प्रकार से सभा लग जाने के पश्चात् प्रभु अपना उपदेश देते हैं । थिति पयासियलोय अल्लोय पुणि अस्थि जे थिति हुंति तेण अस्थिति ति भासिय सुह असुह बिहु व फल कहिवि तेण परगट पयासिय पणी करणी बह विध कहिय जो-जो जिसिय करेड सो सो तिमही मेलि दल सा सा गति भोगे ।।१४१।। अर्थ (उन्होने) लोक-अलोक की स्थिति को प्रकाशित किया । पुनः जो अस्ति हैं अर्थात् स्थित हैं । (नष्ट नहीं होते) उनके स्वरूप को प्रकट किया । शुभ भावों का फल शुभ एवं अशुभ भावों का फल अशुभ होता है एवं उन क्रियाओं के विविध प्रकार हैं, ऐसा भाषण किया । पुन: जो जैसी करनी करता है वैसी ही फल की विधि मिलती है, उस-उस गति में जाता है और वहाँ उस फल को भोगता है । व्याख्या---प्रभु ने द्रव्यों के स्वरूप का उपदेश दिया । सभी द्रव्य अपने-अपने स्वरूप में स्थित हैं, तभी द्रव्य कहलाते हैं । यदि द्रव्य अपने स्वरूप को छोड़ दें तो वे द्रव्य हो नहीं रहेंगे । अत: सब द्रव्य अस्ति कहलाते हैं । वे बहु प्रदेशी होने से अर्थात् शरीर की तरह लम्बे चौड़े होने से काय कहे जाते हैं । पाँच द्रव्य अर्थात् जीव पुदगल, धर्म, अधर्म, आकाश, तो लम्बेचौड़े होने से अस्ति काय कहलाते हैं किन्तु एक काल द्रव्य एक प्रदेशी

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