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मदनजुख काव्य
सिर पर ही प्रहार करेंगे । वे प्रथम जिनेन्द्रदेव तुझे दहवट (नष्ट) कर देंगे ।
___ व्याख्या-कषि ने भावों के द्वारा 3 का पक प्रस्तुत किया है। सिद्धान्त शास्त्रों में इसी प्रकारके वर्णन आए हैं । कर्मों से लड़ना और उनकी सत्ता आत्मा से पृथक करना बड़ा ही कठिन है । मध्य में बड़ेबड़े उपसर्ग और परीषह आते हैं । उनको जीतने के लिए पूर्ण वैराग्य की जरूरत होती है । इसलिए यहाँ भावना को रणक्षेत्र बनाया गया है। उससे कषायशत्रु पर विजय प्राप्तकर आत्मज्ञान में निमग्रतां आती है । प्रभु का अनन्त बल है, उनकी ज्ञानरूपी ध्वजा लहरा रही है। अभी मोह मदन की शक्ति अधिक प्रकट हुई थी इसलिए प्रभुको विवेक की सहायता करने के लिए आना पड़ा । ३६ गुण (दशधर्म, बारह तप, छह आवश्यक, पाँच आचार तीन गप्ति (राजा हैं वे ३६ प्रकृति रूपी राणासे जा भिड़े और उनका नाम निशान मिटा दिया ।
प्रभु के साथ अनेक प्रबलवीर आये थे जैसे—१० प्रकार धर्म, ४ प्रकार धर्म ध्यान, १२ अनुप्रेक्षा १२. अंग, १८ हजार शील, ४ धर्मध्यान सबलघन (हथौड़ा) थे । उनके प्रहार से कोई जीवित नहीं बन सकता था । भगवान संयोगकेवली नामक १३वें गुणस्थान में विराजमान 1 अपने स्वरूपके ध्यान में मग्न थे । उस ध्यान का तेज अपार था । उसके सामने खड़े रहने की समर्थ्य अन्य किसी में नहीं थी । वे प्रभु गति, मार्गणा की स्थिति पर विचार कर रहे थे इस प्रकार भगवान का शौर्य प्रकट हो रहा था । यही आध्यात्मिक रण है । इसमें अन्य शत्रु ठहर नहीं सकता है। इसलिए वहाँ यही ध्वनि हो रही थी कि हे धूर्त मदन, भाग आदीश प्रभु आ रहे हैं ।
तीनि रतन जोसण कसि प्रारि वंभन्नत असि नकीरी वाजहि जसि गहिर सरे । रहिय दया पोरिष पूरि मागिय हिंसा दुरि बलउपसम सूरि कियउ नरे । आए अतिसय तीस चारि परजे ति चकारि मंतु शुक्ल घानु धारि राखिउ मणो । भाजु भाजु रे मदन युट आदिनाहु सिरि सट देह कर दहवट प्रथम जिणो ।।१३४।। अर्थ-(ऋषभदेव) तीन रत्न रूपी जोसण (धन) को कस कर,