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मदनजुद्ध काव्य
अवगंजण मोहकड ज्ञानबुद्धि अवलोइ दिट्ठल प्रेरिउ तव तिणि सीख कहि दे असिवरु सु झाणु । वेगि निवारा पुरा बुद्ध जिन गा निशाणु : ११
अर्थ-तब देव आदीश्वरने विवेकको बुलाया । विवेक बड़ा शक्तिशाली वीर था । वह अपनी शक्तिसे अपूर्णकारण (आठवें) गुणस्थान में बैठा था और नवीन नवीन अपूर्णपरिणाम कर रहा था, जो मोह कृत ज्ञान-बुद्धि को अवमंजण (मर्दन) करने वाले हैं, भगवानने उनको ज्ञानसे अवलोकन करके देखा तथा विवेकको बुलाकर प्रेरणा एवं शिक्षा दी, साथ ही शुक्ल ध्यान नामका असिवर (तलवार) प्रदान किया और कहा कि--- “इन दोनों धूर्तो (मोह और मदन) को तुम यहाँ से निकाल बाहर करो, जिससे निर्वाण प्रगट हो ।
व्याख्या-भगवानकी सबसे लिए ही शिक्षा है कि मोह और मदन दोनों वीरों को निकालनेके लिए अपने परिणामोंको शुद्ध करो । इस मोहका कभी विश्वास न करो । यही निर्वाणको रोकता है । तुम शूर हो, शूरतासे काम लो | इस मोह पर शुभ ध्यान रूपी शस्त्रसे काम लो | इस मोह पर शुभ ध्यानरूपी शस्त्र से प्रहार करो । वहीं तुम्हारा शस्त्र है । इसी प्रकारकी शिक्षा उन्होंने विवेक को देकर सावधान किया और कहा कि इसीके द्वारा तुम मोह और मदन को पराजित करके निर्वाण को प्रकट करो । गाथा छन्द :
प्रगटावण मुत्ति पहो चडियउ विव्वेकु सज्जि भूपालो । सरवण्ण चलणि लम्गिवि ले उनमतु चल्लियउ राम ।।१२२।।
अर्थ-विवेक नामका भूपाल (राजा सजकर शखधारण कर) सर्वज्ञ देवके चरणोंमें लगकर तथा उनका मन्त्र लेकर मुक्ति पथको प्रकट करनेके लिए राम ही (अकेला ही) चढ़कर चल दिया ।
व्याख्या-विवेक आठवें गुणस्थानमें स्थित था । आदीश प्रभुकी आज्ञा शिरोधार्य कर वह अकेले ही मदन और मोह जैसे दुर्दान्त वीरोंको पराजित करने तथा मुक्ति पथको प्रकट करनेके लिए शान्त भावको धारण कर रणभूमि की ओर चल पड़ा । चउपइया छन्द :
उनमतु ले चल्लिड मनमाहें खिल्लिट उपनी बहुत समाधी रणि अंगणि आयउ साधह भाय नवी कुमति कुख्याधी । रजिय सहि-सजण जिम पावस-घण दुज्मण मत्थइतालो