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मदनजुद्ध काव्य
मोहह मय खंडणु ज्ञानह मंडणु चडिड विवेकु भुवालो ।। १२३।। ___ अर्थ-जब विवेक राजा अनुमति लेकर (युद्धके लिए) चला, उस समय वह अपने मनमें बहुत ही प्रफुल्लित हुआ । उसे बहुत प्रकार की समाधी (ऋद्धियाँ) उत्पत्र हुई अर्थात् वह निर्विकल्प शुक्लध्यान में पहुंच गया । वह रणांगण (युद्धभूमि) में आ पहुँचा । साधुओं को भी (उसका यह कार्ग; अच्छा लगा ! विकमी कमनि रूपी बरी त्याधि भी नष्ट हो गई । जिस प्रकार वर्षके मेध सथीको प्रसत्रता से आप्लावित कर देते हैं, उसी प्रकार विवेकने भी सभी सज्जनोंको प्रसन्नता से परिपूर्ण कर दिया। दर्जनोंके मस्तिष्क पर वह विवेक बनके समान था । अपने ज्ञानका मण्डन (भूषण) करनेके लिए एवं मोहके घमण्डको खण्डन (चूर) करनेके लिए राजा विवेक सजकर चला (ध्यानमें स्थिर हुआ) ।
व्याख्या-भगवानकी अनुमति लेकर विवेक राजा युद्धके लिए चल पड़ा । वह आठवें गुणस्थानसे नौवें गणस्थान में चढ़ा। वहाँ उसके भाव
और भी निर्मल हुए जिनसे बहुत सी ऋद्धियाँ उत्पन्न हो गई । जिन्होंने उसकी मोह जनित सभी कुमतियाँ दूर कर दी और श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन: पर्ययज्ञान, उत्पन्न हो गए । इससे सभी दुर्जनोंके सिर पर वज्रपात हो गया तथा सज्जनोंके मन प्रसन्न हो गए | इसप्रकार मोहके मद को नष्ट करने एवं ज्ञानको विभूषित करनेके लिए विवेक ने रणभूमिमें प्रवेश किया । तिसु बज्झे जे नर दीसहि ते खर कित्तिय कम्मिन काजे जिन कई परसपणा पुब्बिल पुण्णा से राणे से राजे से अविरुड भत्तिहि णिम्मल विसिहि विकसित वदन रसालो मोहह मय खंडणु ज्ञानहमंडणु चडिउ विवेकु सुवालो ।।१२४।। __ अर्थ—उस (मोह) से बंधे हुए जो भी मनुष्य दिखलाई पड़ते हैं, वे किस काल में खर (गधा) नहीं कहे गए । जहाँ कहीं भी (मनुष्योंमें) प्रसन्नता दिखलाई पड़ती है, (वह मोह की मंदता है) वे पूर्व पुण्य के कारण राजा हैं । वे अविरत (निरन्तर) भक्ति करते हैं और निर्मल चित्त वाले हैं । वह राजा विवेक, जिसका मुख रूपी कमलफुल्लित है, मोह के मर्दन एवं ज्ञानको विभूषित करने के लिए चढ़कर चला ।
व्याख्या--मोह की ऐसी गाँठ है कि जो प्राणी इसमें एक बार बंध जाता है, वह सदा के लिए भारवाही हो जाता है । जिस प्रकार कुली भार ढोता है, उसी प्रकार जीव भी जन्म-जन्मान्तर तक इस मोहके भारको दोता रहता है । भार ढोने का फल उसे कुछ भी नहीं मिलता । अत: उसका सारा श्रम निष्फल हो जाता है । धोबी का गधा इसी अर्थमें प्रसिद्ध है । इसी प्रकार जो मोहसे बंधे हैं, वे भी गधेके समान हैं । किन्तु जिसमें मोह मन्दता आ