Book Title: Madanjuddh Kavya
Author(s): Buchraj Mahakavi, Vidyavati Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 138
________________ ८६ भदनजुद्ध काव्य षट्पद छन्द : पाप-पटलनिद्दलणु ज्योति परमप्प पयासणु चिन्तामणि बहु रयणु भव्यजण मण उल्लासणु सकल कल्याण कोसु सकल आरति भय पिल्लणु सिद्धिगत जीव अवतंभ धम्मधुर भारह झिल्लणु संतुट्ठ होइ जिसु नरु मिलिड तासु न पाडड़ कम्मफड्ड चडियट विवेकु भ भज्जि इम प्रगट करण निव्वाण पहु ।। १२७ ।। अर्थ - - ( चढ़ाईके निम्न कारण हैं) १. पाप-पटलको निर्दलन (नाष्ट) करना २. परमात्म ज्योतिको प्रकाशित करना । ३. चिन्तामणि रत्न अपनेको बताना ३. भव्य जीवोंके मन में उल्लाश उत्पन्न करना । ५. समस्त कल्याणका कोष बलताना । ६. सभी आर्त भयको भगाना । ७. सिद्धिगत ( शरणागत ) जीवों को अवलम्बन ( सहारा) देना । ८. धर्मधुराके भारको झेलना ९. संतुष्ट होकर जो जीव इससे मिलते हैं उनको कर्म द्वारा कहीं पटकने न देना । १०. निर्वाण पथ को प्रकट करना इन कारणों को लेकर विवेक भट मोहको भगानेके लिए आरूढ़ होकर चल दिया । व्याख्या-- इस रणांगण में कविने विवेक द्वारा मोह पर चढ़ाई करनेके दस कारण बतलाए हैं । १. पाप सबसे बड़े मिथ्यात्व है । तदनंतर हिंसादि कषायें हैं । इन सबका कारण मोह ही है। अतः इसका अस्तित्वही समाप्त कर देना । २. इस पाप पटल के दूर हो जानेसे आत्माके भीतरसे परमात्माकी ज्योति प्रगट होती है। आत्माकी निर्मलता ही परमात्मा है। ३. चिन्तामणि - रत्नकी प्राप्तिसे तात्पर्य है, निर्मोही होना । यह विवेक ज्ञान ही सकल सुखोंका दाता है इसलिए इसका आश्रय ग्रहण करके पूर्ण सुख की प्राप्ति करो । ४. भव्य जीवोंके मनमें उल्लास प्रकट हो अर्थात् वे पूरी तरह निर्भय हो जाएँ । ५. मोहका अभाव सर्व कल्याणोंका कोष है । इस बातकी प्रतीति करना । ६. सकल इष्ट वियोग और अनिष्ट संयोग, वेदना, निदान रूप आर्त से होने वाले भयको दूर करना । न मोह रहेगा और न ही आर्त रहेगा। सातवाँ ७. मोहका अभाव हो जानेसे सिद्धिगत ( शरणागत ) जीवोंके लिए विवेक ही सबसे बड़ा सहारा है । सभी मुनिगण पाप-पुण्यको छोड़ देने पर इसकी शरण में रहते हैं । यह सभी जीवोंको बतलाना । ८. अब इस वीतरागता रूप धर्मका भार मैने उठा लिया है इसलिए तुम लोग निर्भय रहो । ९. कर्म और कर्मफल चेतना तुम्हें कोई योनिमें नहीं पटक सकती है। अब ज्ञान चेतनामें रहो ।

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