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पदनजुद्ध काव्य
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जो दव्याई खिराई जाणइ थित्तई काल भाव स वियार नयसुत्तहि सत्यिहि भेयहि अस्थिहि संकट विकटनिवारह। जो अगमु विभास निरउ भास मदन खनन कुद्दलो मोहह मय खंडण हा जणु चयिउ पालो ।। १५६।।
अर्थ....जो द्रव्य क्षेत्र को जानते हैं, स्थिति, काल और भावको विचारते हैं तथा जो नयसूत्रोंसे शास्त्रोंसे, भेदोंसे, अर्थोंसे विकर संकटको दूर करते हैं, जिनके ज्ञानमें आगम-पदार्थ भी भासते हैं और निर्णय भी प्रकाशित होते हैं, तथा जो मदनको खोद फेंकनेमें कुदालका काम करते हैं, ऐसे शानका मण्डन करनेवाला राजा विवेक मोहके मदका खण्डन (नाश) करनेके लिए चढ़कर चल दिया ।।
व्याख्या—यहाँ विवेकके ज्ञानकी महिमा को दर्शाया गया है । जैन शास्त्रों में किसी भी पदार्थक विचारके लिए सभी नयसूत्रोंसे द्रव्य, क्षेत्र, काल भावका विचार किया जाता है। तभी निर्णय पूरा होता है । द्रव्यके विचार से निश्चयनयसे उसके असली व्यक्तित्वका स्वरूप जाना जाता है
और व्यवहार नयसे वर्तमानके अशुद्ध स्वरूप को । उसकी अनेक प्रकार को पर्यायोंको भी इसी माध्यमसे जाना जा सकता है । दुधानुसे द्रव्य शब्द बना है । द्रव्यका अर्थ है- जो पर्यायोंको प्राप्त हुआथा, प्राप्त होता हैं और प्राप्त होगा, वह द्रव्य है, जिसके द्वारा प्राप्त किया जाता है, ऐसा कर्त्ता कारण रूप से स्वतन्त्र है । इस प्रकार प्रौव्य, उत्पाद और व्यय लक्षण वाला सत् स्वरूप है, गुण पर्याय युक्त है । देवागम में कहा गया है..-"द्रव्यगुणपर्यायाणे त्रिकालानां समुच्चयः । अविप्राइभावसंबंधों द्रव्यमेकमनेकधा ।"
द्रव्य के प्रदेशों को क्षेत्र कहते हैं । प्रदेश जितने लम्बे चौड़े है, वैसा ही द्रव्य भी होता है । परिणमन को काल कहते है और शक्तियोंको भाव कहते है । इस प्रकार इन चारों को स्वचतुष्टयके नामसे पुकारा जाता है । अस्तित्वपूर्वक ही सबका विचार किया जाता है । अतः सत्का ज्ञान आवश्यक है । इसी ज्ञान से विकट संकट, संशय, अज्ञान, विपर्यायादि अनेक प्रश्न दूर हो जाते हैं । यही सम्यज्ञान है । यह मदनको जड़ से उखाड़ फेंकता है । सागारधर्मामृत में कहा गया है
"ज्ञानिसंग तपोष्यानेरप्य साध्योरिपुः स्परगदेहात भेदहानोत्य वैराग्येणैव साध्यते ।"
उस विवेकके ज्ञानकी अपूर्व महिमाथी ।।