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मदनजुख काव्य
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कारण दूसरे लोग उसकी तरफ देख नहीं पाते, उसी प्रकार क्रोधाग्रिसे जले हुए मोहके भयंकर रूपको देखकर सब लोग डल गए। कोई भी उसकी सहायता के लिए उसके पास नहीं आया, जिससे मोह और अधिक दुःखी हो
उठा ।
वस्तु छन्द :
कोइ न बुक्कड़ समुह तिसु आइ
खलु पोरिषु सब हरित मलइ अमलु सो अचलु बइरागहु चारितहु तपहु अवरु संजमहु अट्ठावीस पयइ लगि लग्गड़ जिसु सो नरु जम्मणु मरणु करि महुती
कहुं धाइ । जोणि भभाइ ।। १२० ॥ अर्थ --- उसके सामने आकर कोई नहीं दुका- खड़ा हो सका । उसका सब बल पौरुष नष्ट हो गया, जो मोह अमल था वह रण में मलिन हो गया । जब वह अचल हो गया ( उठ नहीं सका) तब चाल (पुकार करने लगा ) । सहायता के लिए वैराग्य, चारित्र, तप और संयम ( दौड़े) आए पर उस मोहने उन्हें भगा दिया । तब कहीं पीछे से दौड़कर २८ प्रकृतियाँ उसके चरणों में आ गिरी । जो मनुष्य उस मोहके पीछे लगता है, वह बहुत योनियों (८४ लाख योनि) तक जन्म-मरणका चक्कर काटता रहता है ।
चाल | टालइ ।
व्याख्या- मोहकी सेवाके लिए चारित्र, तप एवं संयम जैसी सद्वृत्तियाँ वहाँ दौड़ी आई लेकिन मोहने उन्हें पास नहीं फटकने दिया। उसने विचार किया कि यद्यपि ये सज्जन हैं, फिर भी मेरे द्रोही हैं । कहीं ऐसा न हो कि ये मुझे और कष्ट दें, या मुझे मार ही डालें । इसलिए उसने उन्हें दूर से ही भगा दिया। सज्जन पुरुष आपत्तिकालमें शत्रुकी भी सहायता करते हैं । उनका स्वभाव ही इस प्रकारका होता है। नीतिकार ने कहा है- "अरावप्युचितं कार्यं तत्र गृहमुपागते । नहि छेत्तुः पार्श्वगतांछायां संहरते दुमः ॥ "
चारित्रमोहनीय के २५ भेद (१६ कषाय और ९ नोकषाय ) और दर्शन मोहनीय के ३ भेद । कुल मिलाकर २८ प्रवृत्तियाँ होती हैं । वे प्रवृत्तियाँ दौड़कर मोहकी सेवामें लग गई, जो सज्जन मोहकी सेवा करते हैं, वे उसीके समान दुर्जन बन जाते हैं ।
विवेक का पराक्रम
तव बुलायड देवि आदीसि
विव्वेकु जु सबल भटु अपुष्वकरण धानकि वलिउ