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मदनजुद्ध काव्य
हुए भुने भी हामियोंकि जोड़े के देखा । १.वी देखनेसे अटल उज्ज्वल यशकी प्राप्ति होती है । उत्तम फलोंको देखनेसे उत्तम परिणाम प्राप्तिको सूचित करती है । पुष्पहार यह व्यक्त करता है कि प्रभुके गलेमें जय रूपी माला सुशोभित होगी । न्यायमार्गसे चलनेवालोंको इस प्रकारके एकसे एक सुन्दर शुभ शकुन मिलते हैं । प्रभु आदीश्वर न्यायमार्गी हैं । उनकी भक्ति पूजा से एवं उनके निमित्तसे सभी सदाचारियोंके कार्य सिद्धिको प्राप्त होते हैं । यहाँ साक्षात् प्रभुही युद्धके लिए सन्नद्ध हुए हैं, इसलिए सभी शुभ-शकुन दृष्टिगोचर हुए । वस्तु छन्द : दिट्ठ उत्तम सवण ए आम गढ़ पाखलि उत्तरिय सुमति पंच सावान छाइय मनु सूरहं गहगहिउ जसु निसाण परगट बजाइय दोनउं दुक्के सबल दल मिलिय सुभट मुख जोडि रणु देक्खिवि जे नर खिसहि तिन्हकी जननी खोडि ।।१०१।।
अर्थ-(भगवान आदीश्वरने) जब इन सभी शकुनोंको देखा तब वे गढ़-पर्वतसे उतरे । वे अपने साथ पाँच-समितियोंका सामान भी लिए हुए थे । जैसे ही निशान (युद्धके बाजे) बजने लगे, वैसे ही शूरवीरोंका मन गहगहाने (उछलने) लगा । जब दोनों ही सेनाएँ दल-बलके साथ परस्पर में मिली तब शूरमा तो मुख जोड़कर परस्परमें मिल गए लेकिन जो नर युद्ध (भीषणता) को देखकर खिसकने (कायर होनेके कारण भागने) लगे, उनकी माता थोड़ी (बन्ध्या) है ।
व्याख्या--भगवान इन शुभ शकुनोंको देखनेके पश्चात् अपने गढ़ पर्वतसे नीचे उत्तरे । उनके साथ सामानके रूप में पाँच समितियाँ भी थीं। अर्थात वे देखकर चलते थे । देखकर पैर उठाते थे, हित-मित वचन बोलते थे, शुद्ध भोजन करते थे और मूल-मूत्र का योग्य स्थानमें क्षेपण करते थे । यद्यपि भगवानको मल-मत्र नहीं होता इसलिए क्षेपणका प्रश्न ही नहीं है । तथापि समिति अवश्य होती है तथा उस संस्कारका आरोपण किया जाता है । रणमें वाद्य बजते ही वे शूर-वीर प्रभु युद्धके लिए तत्पर हो जाते हैं उनकी माता सन्ची माता थी किन्तु जो कायर पुरुष रण क्षेत्रको देखकर भाग जाते हैं, उनकी माता बन्ध्या हैं । पद्धडी छन्द :
तिन्ह जननि खोडि जे मज्जि जाहिं