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मदनजुन काव्य
व्याख्या--आदीश्वर देवाधिदेवने जब युद्धके लिए प्रयाण किया तब मार्गमें उत्तम शकुन हुए । प्रभुका युद्ध नीतिमार्गका था, अत: शुभ चिन्होंका प्रकट होना आवश्यक है । यहाँ तीन शकुनोंका वर्णन विशेष रूपसे किया गया है । प्रथम शकुन वृषभका है । आदिनाथ भगवानका चिह्न भी वृषभ ही है फिर स्वप्रदर्शनोंमे भो प्रथम स्वप्र बलका है। बलका अर्थ भारवाही है । भगवान ऋषभदेवने भी धर्मका भार उठा लिया है । इसीको प्रकट करने वाला प्रथम शकुन नाथा हुआ धवल बैल सम्मुख आ गया । "नाथा हआ' का अभिप्राय वशमें रहने वालेसे है । कविने "आइयउ" शब्दका प्रयोग किया है, जो इस बातका सूचक है कि ऐसे शकुन चाहनेसे नहीं मिलते, वे तो स्वयमेव उपस्थित हो जाते हैं ।
दूसरा शकुन वाद्योंकी मधुर झंकारका है तथा तीसरा सन्दरनारियों द्वारा मधुर स्वरमें गीत गाना ! अभी तो प्रभुको यात्राकी प्रथम मंजिल है । उसमें ही मधुर गीत-वादित्र द्वारा विजयकी सूचना मिल गई । जीवकाण्डमें मनकी रचना "वियसिय अठ्ठच्छदाविदवा'' बतलाई गई है । अत: मन कमल कहा गया है । शान्ति और हर्षपूर्वक चलना, शत्रु पर भी समभावका सूचक है । दाहिने हाथको संसार में शुभ माना गया है । यहाँ वर्णित सभी लक्षण विजयकी सूचना दे रहे हैं ।
ले हाथि पूरण कलसु लखमी मिलिय सम्मुह आइ पावक्क दीपक ज्योति समसरि देखिया जिणराइ सध्यत्य सरही अति अनुपम काढ़ता स गुवालु पइसंतु पवलिहि दिट्दु नरवा कर गहेउ करवालु ।।१८।।
अर्थ-पूर्ण जलसे भरा हुआ कलश हाथोंमें लिए हुए लक्ष्मी (सौभाग्यवती नारी) सम्मख आकर मिली । जिनराजने प्रज्ज्वलित दीपक ज्योति बराबर अपने सामने देखी । सर्वत्र अति अनुपम सुरभी गायोंसे दूध निकालते हुए ग्वालोंको देखा । किसी राजाको हाथों में तलवार लिए हुए पौली (गली) में प्रवेश करते देखा ।
व्याख्या-यात्रा के समय सामने पूर्णकलश का मिलना संसारमें महान् सफल शकुन माना गया है । यह कार्यकी पूर्ण सफलताको व्यक्त करता है । दीपककी ज्योतिको एक समान जलते हए देखना जगमगाते यशको प्रकट करता है । जैसी ज्योति होती है वैसी ही कीर्ति प्राप्त होती है । सुरभि गायों से दूध दुहते ग्वालोंको देखनेसे तात्पर्य है कि इस प्रकारकी गाएँ जिनके घरमें होती हैं, वे तो समद्धिशाली होते ही हैं, साथही देश