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मदनजुद्ध काव्य
किया । वे गर्वका थोड़ा भी भाव मनमें नहीं लाए । उन्होंने सार (समाचार) देकर विवेकको बुलाया और कहा कि सभा जोड़कर शुभ मन्त्रका उपाय करो ।
व्याख्या-दूतोंकी बात सुनकर ऋषभदेवके मनमें हर्ष हुआ । मोहके आगमनसे उनके मनमें थोड़ा-सा भी विकार भाव नहीं आया । यही उत्तम शूरोंका लक्षण है—“विकारहे तासति विक्रियन्ते येषां न चेतांसितौ सएव धीराः ।' जिनेशने मोहको जीतनेके लिए युद्ध में जानेका विचार किया था किन्तु वह स्वयं ही आ गया । इसलिए उन्हें हर्ष हुआ— “यस्य देवस्य गंतव्यं स देवो गृहमागतः । ।'
उन्होने विवेक को बुलाकर कहाकि-मन्त्रि-परिषद जोड़कर युद्धकी तैयारी करो । राजनीति यही है कि कोई भी संकट उपस्थित होने पर मन्त्रियोंसे सलाह करके, सेना सुसंगठित करके अवसर देखकर युद्ध करना ही विजयश्रीको प्राप्त कराता है । . षट्पद छन्द :
समु दमु संवरु बुक्कु दुक्कु बहरागु सबल नरु कीहितत्तु परमायु सपण संतोष पर भरु छिमा सुमन मिलिउ मिलिउ अज्जन मुत्तित्तउ संजमु सत्तु सउच्च अकिंधणु चाउ वंभवउ बलु मंडि पिलिय करुणा अटलसासण विनय वधाइयड ले फोज सवल संबूहि करि इम विवेक भडु आइयड़ ।।१५।।
अर्थ-उस (सभामें सम, दम, संवर ने प्रवेश किया । वैराग्य रूप सबल नर आ पहुँचा । परमार्थ रूप बोधितत्व तथा गौरवसे भरे हुए सन्तोष आदि स्वजन भी आ गये । उत्तम क्षमा, मार्दव, धर्म भी आकर मिल गए | आर्जव और मर्तिमान तप धर्म भी आ मिला । संयम, सत्य, शौच, अकिंचन, त्याग और ब्रह्मचर्य भी मिलकर आ गए। उन्होंने बल (सेना) को माँडा (तैयारीकी) अटल करुण (दया) और शासन की विनय को विस्तत किया । इस प्रकारकी फौज लेकर सबल संव्यूह बनाकर विवेक भट भी आ गया । (सामने खड़ा हो गया) ।
व्याख्या-ऋषभेश और मोह दोनों के पास भावोंकी सेना है एक तरफ स्वभावोन्मुख भाव है तो दूसरी ओर विकारीभाव है । आत्मामें जब मोक्षमार्गके भाव आते है तो एक दुभेद्य किला बन जाता है । स्याद्वाद
१. सहण.