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मदनजन्य
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व्याख्या- -"भग" का अर्थ अनन्तचतुष्टयरूप लक्ष्मी यश आदि गुण । वे गुण जिनकी आत्मा में प्रकट हो गए हैं, उन्हें भगवान् कहते हैं । ऋषभदेव अर्थात् ऋषभनाथ भगवान प्रथम तीर्थकर हैं । महाभारत में इनका असाधारण निरूपण किया गया है। जब वे ज्ञानवरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अंतराय कर्म से रहित हो गए तब उनकी आत्मा परमात्मा, सर्वज्ञ, अरहन्त परमेष्ठी बन गई ।
तीर्थ का अर्थ हैं घाट । अरहन्त प्रभु सकल अर्थात् शरीर सहित होने से साक्षात् मूर्त्तधर्मको धारण करते हैं। वह धर्म मुमुक्षु जीवोंको संसार से पार उतारने के लिए तीर्थ का कार्य करता है । अत: प्रभु तीर्थंकर कहे जाते हैं । उस समय पूर्ण ज्ञान प्रकट होने से वही आत्मा सर्वज्ञ कही जाती हैं ।
सर्वज्ञ का लक्षण है
"यः सर्वाणि घराचराणि विविधं द्रव्याणि तेषां पर्यायानपि भूत भावि भवतः सर्वान् सदा जानीते युगपत्प्रतिक्षणमतः
सर्वज्ञ
सर्वज्ञाय जिनेश्वराय महते
गुणान् । सर्वथा || इत्युच्चते ।
वीराय तस्मै नमः ।। "
शुभध्यान- ज्ञानी सम्यग्दृष्टि जीव अपने मंदकषाय से होने वाले उत्तम क्षमादि धर्म सहित शुभभाव रूप होता हैं। उन शुभ भावों से जो एकाग्रता आती है उसे शुभध्यान कहते हैं । उसके चार भेद हैं- १. आज्ञाविचय २ अपायविचय ३ विपाकविचय एवं ४ संस्थान विचय | दूत - जो स्वामीके संदेशको स्वामीके शब्दों में अथवा अपने शब्दों में पहुँचाता है, स्वामी के कार्यों को तत्परतासे करता है और कार्य अकार्य तथा काल अकालको अच्छीतरह जानता है, साथ ही बुद्धिमान भी होता हैं, उसे दूत कहते हैं ।
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विवेक - विवेक का अर्थ है भेद विज्ञान जब स्वपर का रहस्य समझ में आ जाता हैं, तो व्यक्ति आत्म-कल्याण में प्रवृत्त हो जाता है । दोहा छन्द :
चलिउ विवेकु आनंदकरि धम्मप्पुरि सु
पतु ।
परणाई संजम - सिरी सुख भोगवड़ बहुतु ।। ५५ ।। अर्थ -- विवेक ने आनन्दपूर्वक प्रस्थान किया और धर्मपुरी (प्रभु ऋषभेश) के पास जा पहुँचा। विवेक का विवाह (प्रभुने) संजमश्री नामक कन्या से करा दिया । विवेक अपनी पत्नी के साथ बहुत सुख भोगने