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मदनजुद्ध काव्य
हुए । उन्होंने धर्मपुरीमें निवास किया है । उनसे भयभीत होकर मैं आपकी शरणमें आया हूँ । आपके अतिरिक्त मेरी रक्षा दूसरा कौन कर सकता है? शरणगतकी रक्षा करना बड़ों का कर्त्तव्य है । दोहा-छन्द :
आज पडिय तिनु' अवसरिहि पुरुषहँ सीझर्हि काम । कलिकालिहि पच्चारियउ मोहु तमक्किउ ताम ||७२।।
अर्थ-अवसर आने पर ही पुरुषोंके कार्य सिद्ध होते हैं । वह अवसा आ पड़ा है । (बालकाः के इन बचारेको सुगबन मोजा ) तमक उठा (क्रोधित हो उठा) और उसने कलिकाल को फटकारा ।
व्याख्या...कलिकालने मोहको अपने आनेका प्रयोजन बतलाते हुए कहा--- श्री ऋषभदेव बड़े प्रबल वीर हैं । उनके कारण इन देशो, क्षेत्रों में मेरा रहना कठिन हो गया है । अवसर देखकर कार्यकरने से महापुरुषोंके कार्य सिद्ध होते हैं । भगवान ऋषभदेवको भी चतुर्थकाल रूप सुअवसर प्राप्त हो गया है । अब वे संयम धारण कर बैठ गए हैं । उन पर मेरा कोई वश नही चल रहा है । अत: मैं आपके पास चला आया । इन बातोंको सुनकर मोह राजा क्रोधित हो उठा और कलिकालको ही डाँटने लगा । तू भागकर क्यों आ गया! तुझे वहीं रहना चाहिए था । यहाँ मोहके तमकनेसे तात्पर्य है कि चारित्र मोहका तीन उदय हो गया । पाथडी छन्द :
तम कायठ तिणि भडु मोह जाइ पुनि माया तहिं ठइ लिय बुलाइ जब दोनउँ बइठे एक सत्थ कलिकालु कहइ तव जोडि हत्थ ।।७३।।
अर्थ--उस (कलिकाल) ने मोहभटके पास जाकर उसे और तमकाया (क्रोधित किया) । अनन्तर मोहने फिर मायारानीको उसी स्थान पर बुला लिया। जब दोनों (राजा, रानी) एकसाथ बैठे तब कलिकाल उनके सम्मुख हाथ जोड़कर बोलने लगा ।
व्याख्या-राजा मोह छिपा-छिपा कार्य करता है । जब वह कार्य कर चुकता है तब पता चलता है कि यह मोहका कार्य है । सभी राजाओंकी यही नीति होती है । मोहकी पत्नी भी छिप-छिप कर कार्य करती है इसलिए उसका नाम माया है । कलिकाल दोनोंके सम्मख अपनी कथा कहता है ।
१. ख.ग. तित्तु