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मदनशुओं काय
कारण वे देवपर्याय में उत्पन्न हुए । वहाँ से बहुरूप (विक्रिया रूप) बनाकर वे मनुष्यलोक में आए और रामलीला दिखाकर लोगोंको भोग में आसक्त कर दिया । तिर्यंचगति में जितने दुष्ट तिर्यंच जीव थे उन्हें शीघ्र वनखंडमें डालकर जला (कामग्नि से जला) दिया । इस प्रकार अश्वपति (राजा) गजपति (राजा) नरपति महाराज भूपति (जमींदार) तथा भूरहित (भूमिहीन जो भी वीर थे) वे सब राजा मदन के मोह-रस से ऐसे छले गए कि अपना अछल (साधु स्वभाव) भूल गए । अटल प्रणवीरों को मदनने प्रपंच करके न्यामार्ग से टाल (पतित) दिया । व्याख्या- "जा रस रावण के घर छोना रह्यों न भोना ।
नाही रस लोगन खिलौना कर राख्यो है ।।" इस उक्तिके अनुसार जो लोग शृंगार रस के रसिक बन जाते हैं । वे सब मानवीय कर्त्तव्य भूलकर इस रस की अग्नि में अपने प्राणों की आहुति दे डालते हैं । चारों गतियों में कहीं भी सुख नहीं है, जो सुख दिखलाई पड़ता है, वह भी दुख ही है, ऐसा आचार्यों ने कहा है
"सपरं बाधा सहिदं विच्छिण्णं बंध कारणं विसमं । जं इंदियहि लद्धं तं सोक्खं दुक्खमो सहा ।। प्रवचनसार पुरुषाः पुरुषेष्वेव यदनिष्ट प्रयोजनः। अत्यारुढस्य तत्सवं रागस्येव विचेष्टितम् ।।"(तत्वार्थवार्तिक)
वही विवेकी साधु है, जिसने राग पर विजय प्राप्त करली है । वसन्त ऋतुराजके आने पर मोहराजाको घोषणासे सभी युद्ध के लिये उद्यत हो गए । विवेक राजाको निवृत्तिमार्ग से प्रवृत्तिमार्ग में लाने हेतु सभी चल पड़े, जिससे कि आगे मोक्षमार्ग का कोई नाम ही न सुने और न वैराग्य की परिणति करें । वस्तु' छन्द :
जित्तिए सहु कियउ मनि हरख। पुन्नपुर' दिसि चलिड सब विवेकि आवंत सुणियउ । चित्तंतरि चिंतविड करिवि मंतु एरिसड मुणियउ । धम्मप्पुरि श्री आदि जिनु सुणियह परगट नाउं तत्य गए ह उव्यरळ मदन गंवाबर्ड ठाउं 11५३।। अर्थ---मदन राजा के जितने सेवक गण थे, सभी मनमें हर्षित हुए।
१. ख. रउ छन्द २. ग. पुष्पपुरि