________________
मदनजुद्ध काव्य
परवर्ति निवर्ति दुइ तास तीयए प्रकट जाणाहु । जणि निवर्ति विवेकु सुतु परवर्तिहि मडु मोहु । सो बलि बइठउ राजु लेहु करई' कपटु नितु द्रोहु ।।७।।
अर्थ-राजा चेतन शरीर रूपी गढ़के मध्य रहता हुआ भी सार (विशेषता) को हैं .नता . ६ का .F: Iiiपल मंत्री ना. गया है । उस राजाकी प्रवृत्ति और निवृत्ति नामकी दो स्त्रियों थीं । निवृत्तिने विवेक नामके पुत्रको जन्म दिया और प्रवृत्तिने भट (वीर) मोहको जन्म दिया । वह मोह नामक पुत्र बलपूर्वक राजा (अपने पिता) से राज्य लेकर बैठ गया और नित्य कपट एवं द्रोह करने लगा ।
व्याख्या-अनादिकालसे शरीरके साथ रहते-रहते राजा चेतन अपने स्वरूपकी विशेषताको भूल गया और उस अचेतन कायाके साथ अपना एकत्व मानने लगा । चेतन का लक्षण-ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य स्वरूप है और शरीरका लक्षण-जड़, अनित्य, मलसे भरा हुआ है । यह लक्ष्यभेद वह नहीं जान सका । शरीरमें आसक्त हो जानेके कारण उसकेदो विवाह हुए । एक रानीका नाम प्रवृत्ति और दूसरीका निवृत्ति था । दोनों ही रानियोंने एक-एक पुत्रको जन्म दिया । प्रवृत्तिके पुत्रका नाम मोह था, जिसका आचरण पिताके प्रतिकूल था । दूसरा पुत्र विवेक था जो पिता के अनुकूल था ।
राजा चेतन की पटरानियाँ मडिल्ल छन्द :
मोह-धरिहि माया पटराणी, करइ न संक अधिक सखलाणी । करि परपंचु जगतु फुसलावइ, तहिं निवर्ति किम आदरु पाव ।।८।।
अर्थ-राजा मोहके घरमें माया पटरानी थी। वह माया रानी (अपनी) अत्यधिक शक्तिके कारण किसीकी शंका नहीं करती और अपने प्रपंचों से संसारके जीवोंको फुसलाती रहती है । वहाँ राजा चेतनकी निवृत्ति नामक सनी कैसे आदर पा सकती थी?
व्याख्या–मोहका नाम ही संसारी जीव है और माया उसकी परिणतिका नाम है । रात-दिन चेतन इस अपनी ही संतान और परिणत्तिके
१. कर ख, कर कपट नित दोह