________________
१२
मदनजुद्ध काव्य
लोग राजा चेतन और सत्यके द्वारा बताए हुए मार्गको जानते थे । वहाँ मिध्यात्वकी प्रवृत्ति नहीं थी। जिनके हृदयमें जो भाव होते थे, वहीं बाहर निकलते थे । कपटने उन बातोंको सुना और विचार किया कि असली वेशसे नगर में प्रवेश करना दुर्लभ है, अतः उसने यतिन्नतीका नकली वेश बनाया और नगरमें प्रविष्ट हुआ
मडिल्ल छन्द :
नयरी मांहि कपटु संचरिय ठामिठामि सांदेखत फिरियड | देखि विवेक सभा सुविचक्षण देखी प्रजा सबइ सुभलक्षण ।। १९ ।।
अर्थ- उस कपटने यती वेशमें नगरमें संचार किया । वह स्थान - स्थानको अच्छी तरहसे देखता हुआ फिर रहा था ( भ्रमण कर रहा था)। वहाँ उसने राजा विवेककी सुविचक्षण सभा देखी तथा समस्त प्रजाको शुभ लक्षणोंसे युक्त देखा ।
व्याख्या - जहाँ विवेकका राज्य होता है वहाँ अन्यायकी प्रवृत्ति नहीं होती । जैसा राजा होता हैं वैसी ही प्रजा होती है । उस कपटने वहाँ शुभलक्षणों वाली प्रजाको देखा । उसने विवेक राजाकी सभा भी देखी तथा प्रजा को भी देखा जहाँ विवेकपूर्ण उपदेश हो रहा था । जहाँ सभी पुरुष सुविचक्षण धर्म में निपुण बैठे थे। "न सा सभा यत्र न संति वृद्धा: । न ते च वृद्धाः ये न वदंति धर्मम् । इस प्रकार सभामें सभी वृद्धपुरुष थे। वे न्यायमार्ग का अनुसरण करने वाले थे । विवेक सम्यक्तत्व का नाम हैं। अतः सभी सच्चे देव शास्त्र, गुरुके श्रद्धानी थे । वहाँ कोई भी हिंसक चोर, चुगलखोर, असत्यवादी, बदमाश, कंजूस नहीं था। सभी परस्पर में प्रेमपूर्वक रहते थे । सभी मोक्षमार्ग के पथिक थे । संसार मार्ग पर किसी की रुचि नहीं थी । किसी की दृष्टिमें मूढ़ता का प्रवेश नहीं था। वे काम, क्रोधमद आदि विकार भावोंसे डिगनेवाले को फिर से स्थापन कर सँभालने वाले थे । वहाँ किन्हीं भी पुरुषोंमें दोष नहीं थे अतः दोषोंको छिपाने की बात भी नहीं थी । उत्तम भात्रोंकी जागृति सबकी आत्मा में श्री । वहाँ बहिरंग प्रभावना होती ही रहती थी । ऐसी शुभ लक्षण वाली प्रजा को उस कपट दूतने देखा ।
बहु
देखि न्याय नीति मारगु देखिउ तहिं उड़ लोक सुखी सहु ।
-